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सोमवार, 14 सितंबर 2015

​ (खुद से खुद के मिलन हेतु – काल भैरव साधना)


  प्रकृति एक ऐसा मंच है जिसपर यदि आपके चिंतन में भी किसी कार्य

            को करने का विचार आया तो फिर आपके द्वारा उस कार्य को करने या

           ना करने से सिर्फ भौतिक स्तर पर अंतर आएगा, क्योंकि ब्रह्मांड में वो

           घटना तो मात्र आपके चिंतन से ही घटित हो चुकी है......

                                         कशमकश का एक अंतहीन सिलसिला- हमारा मन 

आपने यह तथ्य मन से संबंधित लेख में पढ़ा है किन्तु यह तथ्य मात्र पढ़ने के लिए नहीं लिखा गया था, अपितु इसके बहुत गहन अर्थ हैं. मैंने अपने हर लेख में मेरे मास्टर द्वारा समझाई गयी एक बात को हमेशा और बार बार दोहराया है कि शून्य या ब्रह्मांड एक ऐसे साम्राज्य का नाम है जिसमें असंभव जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं है.....वहाँ हर वो चीज सम्भव है जो सामान्य बातों में सोच के भी परे हो.

 “ संभव “  शब्द के संभवतः हाजारों करोड़ों अर्थ हो सकते हैं क्योंकि कौन कैसी मानसिकता के साथ इस शब्द की व्याख्या करता है यह निर्भर करता है इस बात पर कि हर एक से दूसरे इंसान के बीच विचारों का मतभेद कितना गहरा है. किन्तु तंत्र में इस शब्द का एक ही अर्थ है...... सक्षम बनो तांकि काल का पहिया भी तुम्हारे हिसाब से चले “..... और यही बात मुझे मेरे मास्टर हमेशा समझाते हैं कि तंत्र मूर्खों की अपेक्षाओं पर नहीं चलता और जिसने काल का वरण कर लिया उसके लिए करने को कुछ और शेष नहीं रह जाता. हम सब जानते हैं कि दशानन रावण कालजयी थे क्योंकि उन्होंने अपने काल को अपने पलंग के खूंटे से बाँध रखा था....पर हमने कभी यह जानने की चेष्टा नहीं की कि उन्होंने ऐसा किया कैसे था....वो यह सब इसलिए संभव कर पाए थे क्योंकि वो एक श्रेष्ठ तांत्रिक थे....और उन्होंने अपने अंदर के काल पुरुष पर विजय प्राप्त कर ली थी.

हम सब के अंदर एक काल पुरुष होता है जिससे हम शिव के प्रतिरूप काल भैरव के रूप में परिचित हैं. भैरव कुल ५२ होते हैं पर इनमें से सबसे श्रेष्ठ काल भैरव हैं. इसमें कोई दो-राय नहीं है कि हर भैरव एक विशेष शक्ति के अधिपति हैं पर काल भैरव को इन सब भैरवों के स्वामित्व का सम्मान प्राप्त है और ज़ाहिर है यदि यह स्वामी है तो हर परिस्थिति में अपने साधक को अधिक से अधिकतम सुख और फल प्रदान करने वाले होंगे, इसीलिए इनकी साधना को जीवन की श्रेष्टतम साधना कहा गया है. वैसे तो हर साधना का हमारे जीवन में विशेष स्थान है पर कुबेर साधना, दुर्गा साधना और काल भैरव साधना को जीवन की धरोहर माना गया है.

 अब सबसे बड़ी बात यह है कि भैरव नाम सुनते ही मन में एक अजीब से भय का संचार होने लगता है, भयंकर से भयंकर आकृति आँखों के सामने उभरने लगती है, गुस्से से भरी लाल सुर्ख आँखें, सियाह काला रंग, लंबा चौड़ा डील डोल और ना-जाने क्या, क्या??? इसके विपरीत एक सच यह भी है जहाँ भय हो वहाँ साधना नहीं हो सकती और साक्षत्कार तो दूर की बात है.

 किन्तु जहाँ समस्या वहाँ समाधान....तो काल भैरव की साधना से सम्बंधित डर से मुक्ति पाने के लिए हमें इनको समझना पड़ेगा. जैसे सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही काल और भैरव एक सिक्के के दो पक्ष हैं. काल का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है वो पुरुष जिसमें काल पर विजय प्राप्त करने की क्षमता हो. अब यहाँ काल का अर्थ सिर्फ मृत्यु नहीं है अपितु हर उस वस्तु से है जो हमारे मानसिक सुखों को क्षीण करने में सक्षम हो. अब यह समस्या शारीरिक, आंतरिक, मानसिक, और रुपये पैसे से संबंधित कैसी भी हो सकती है.

अब जो काल पुरुष होगा उसे इनमें से किसी समस्या का भय नहीं होगा क्योंकि समस्या उसके सामने ठहर ही नहीं सकती. देवता और मनुष्यों में सबसे बड़ा अंतर यही है कि देवताओं की सीमाएं होती है जैसे अग्नि देव मात्र अग्नि से संबंधित कार्य कर सकते हैं उनका वरुण देव से कोई लेना देना नहीं, इसी प्रकार काम देव का इन दोने और अन्य देवताओं से कोई सरोकार नहीं, जबकि इसके विपरीत केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी हैं जिसके अंदर पूरा ब्रह्मांड समाहित है, जिसकी किसी भी कार्य को करने की कोई सीमा नहीं बस जरूरत है तो उसे अपने अंदर के पुरुष को जगाने की और यह तभी संभव है जब हमने हमारे ही अंदर के ब्रह्मांड को अर्थात काल को जीत लिया हो.

ऐसा ही एक साधना विधान यहाँ दे रही हूँ जो करने में बेहद सरल तो है ही पर इस विधान को करने के बाद के नतीजे आपको आश्चर्यचकित कर देंगे. इस साधना को करने के बाद ना केवल आपमें आत्म विश्वास बढ़ेगा बल्कि जटिल से जटिल साधनाएं भी आप बिना किसी भय और समस्या के कर पायेंगे. इस साधना को करने के पश्चात काल साधना करना सहज हो जाता है जो आपको काल ज्ञाता बनाने में सक्षम है अर्थात आप भूत, भविष्य, वर्तमान सब देखने में सामर्थ्यवान हो जाते हैं. आँखों में एक ऐसी तीव्रता आ जाती है कि हठी से हठी मनुष्य भी आपके समक्ष घुटने टेक देता है.

इसके लिए आपको बस यह एक छोटा सा विधान करना है. किसी भी रविवार मध्यरात्रि काल में नहा धोकर अपने पूजा के स्थान में पीले वस्त्र पहन कर पीले आसान पर बैठ कर आपको निम्न मंत्र का मात्र ११ माला मंत्र जाप करना है.

मंत्र -

   || ओम क्रीं भ्रं क्लीं भ्रं ऐं भ्रं भैरवाय भ्रं ऐं भ्रं क्लीं भ्रं क्रीं फट ||

साधना को करते समय आपकी दिशा पश्चिम होगी और दीपक तिल के तेल का जलाना है. किसी भी साधना में सफलता हेतु सदगुरुदेव का और विघ्नहर्ता भगवान गणपति का आशीर्वाद अति अनिवार्य है इसलिए भागवान गणपति की अर्चना करने के पश्चात ही साधना प्रारंभ करें और मूल मंत्र की माला शुरू करने से पहले कम से कम गुरुमंत्र की ११ माला का जाप जरूर कर लें. मास्टर द्वारा दिए गए विधान में यदि आपने कोई माला सिद्ध की हो तो आप उसका उपयोग करें अन्यथा गुरु माला जिससे आप अपनी नित्य साधना करते हैं उसी का उपयोग कर सकते हैं. साधना करते समय आपका वक्षस्थल अनावर्त होना चाहिए और यदि कोई गुरु बहन इस विधान को सम्पन्न कर रही है तो उन पर यह नियम लागू नहीं होता. साधना के पश्चात अपना पूरा मंत्र जाप सदगुरुदेव को समर्पित कर दें और एक जरूरी बात हो सकता है की साधना के दौरान आपका शरीर बहुत जादा गर्म हो जाए या ऐसा लगे जैसे गर्मी के कारण मितली आ रही है तो घबरायें नहीं, जब आपके अंदर उर्जा का प्रस्फुटन होता है तो ऐसा होना स्वाभाविक है. अपनी साधना पर केंद्रित रहें थोड़ी देर बाद स्थिति अपने आप सामान्य हो जायेगी.

खुद इस अद्भुत विधान को करके देखें और अपने सामान्य जीवन में बदलाव का आनंद लें, पर एक बात का ध्यान जरूर रखें किसी भी साधना में ऐसा कभी नहीं होता है की आज साधना की और कल नतीजा आपके सामने आ जायेगा, इसके लिए आपको अपने दैनिक जीवन पर बड़ी बारीकी से नज़र रखनी पड़ती है क्योकि बड़े बदलाव की शुरुआत छोटे छोटे परिवर्तनों से होती है.

(नोट कृपा साधना करने के पश्चात हर दिन या कुछ दिनों के अंतराल से की गयी साधना की न्यूनतम एक माला या अधिकतम अपनी क्षमता के अनुसार जितनी चाहें उतनी माला मंत्र जाप कर लें जिससे की यह मंत्र सदा सर्वदा आपको सिद्ध रहे.)

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