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मंगलवार, 15 सितंबर 2015

हस्त-मुद्रा



हस्त-मुद्रा

मानव-सरीर अनन्त रहस्योंसे भरा हुआ है । शरीरकी अपनी एक मुद्रामयी भाषा है । जिसे करनेसे शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ में सहयोग होता है । यह शरीर पंचतत्त्वोंके योगसे बना है । पाँच तत्त्व ये हैं-

(1) पृथ्वी, (2) जल, (3) अग्नि, (4) वायुएवं (5) आकाश । शरीर में जब भी इन तत्त्वोंका असंतुलन होता हैतो रोग पैदा हो जाते हैं । यदि हम इनका संतुलन करना सीख जायँ तो बीमार हो ही नहीं सकते एवं यदि हो भी जायँ तो इन तत्त्वोंको संतुलित करके आरोग्यता वापस ला सकते हैं ।

     हस्त-मुद्रा-चिकित्साके अनुसार हाथ तथा हाथोंकी अँगुलियों और अँगुलियोंसे बननेवाली मुद्राओंमें आरोग्यका राज छिपा हुआ है । हाथकी अँगुलियोंमें पंचतत्त्व प्रतिष्ठित हैं ।

     ऋषि-मुनियोंने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं इसे उपयोगमें बराबर प्रतिदिन लाते रहेइसीलिये वे लोग स्वस्थ रहते थे । ये शरीरमें चैतन्यको अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियाँ हैं ।

     मनुष्यका मस्तिष्क विकसित हैउसमें अनंत क्षमताएँ हैं । ये क्षमताएँ आवृत हैंउन्हें अनावृत करके हम अपने लक्ष्यको पा सकते हैं ।

     नृत्य करते समय भी मुद्राएँ बनायी जाती हैंजो शरीर हजारों नसों एवं नाडियोंको प्रभावित करती हैं और उनका प्रभाव भी शरीरपर अच्छा पड़ता है ।

     हस्त-मुद्राएँ तत्काल ही असर करना शुरू कर देती हैं । जिस हाथमें ये मुद्राएँ बनाते हैंशरीरके विपरीत भागमें उनका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है । इन सब मुद्राओंका प्रयोग करते समय वज्रासनपद्मासन अथवा सुखासनका प्रयोग करना चाहिये ।

     इन मुद्राओंको प्रतिदिन तीससे पैंतालीस मिनटतक करनेसे पूर्ण लाभ होता है । एक बारमें न कर सके तो दो-तीन बारमें भी किया जा सकता है ।

     किसी भी मुद्राको करते समय जिन अँगुलियोंका कोई काम न हो उन्हें सीधी रखे ।

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