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मंगलवार, 15 सितंबर 2015

कलियुग में धर्म, पवित्रता , दया,शाररिक बल तथा स्मरणशक्ति दिन प्रतिदिन क्षीण होते जायेंगे





सत्युग में विष्णु का ध्यान करने से, त्रेता युग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान के चरणकमलों की सेवा करने से जो फल प्राप्त होता है, वही कलियुग में हरे कृष्ण महामंत्र से हो जाता है। कलियुग में यज्ञ करनासंभव नही है इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कलियुग में बुद्धिमान लोग भगवान के पवित्र नाम के कीर्तन का यज्ञ करेंगे” | मन्त्रों के उच्चारण तथा कर्मकांड के पालन में त्रुटियाँ हो सकती हैं | देश,काल,व्यक्ति तथा सामग्री के विषय में भी कमियां रह सकती हैं | किन्तु भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन करने से हर वस्तु दोषरहित बन जाती हैं | जो लोग सचमुच ज्ञानी हैं, वे इस कलियुग के असली महत्व को समझ सकते हैं | ऐसे प्रबुद्ध लोग कलियुग की पूजा करते हैं, क्योकिं इस पतित युग में जीवन की सम्पूर्ण सिद्धि संकीर्तन सम्पन्न करके आसानी से प्राप्त की जा सकती है 
हे प्रभु! कलियुग में पवित्र तथा संत पुरुष जो आपके दिव्य कार्यों का श्रवण करते है और उसका यशोगान करते हैं, वे इस युग के अन्धकार को सरलता से लाँघ जायेंगे।

कलियुग के लक्षण स्कन्द 12 अध्याय 23 में इस प्रकार बताये गए हैं कलियुग में धर्म, पवित्रता , दया,शाररिक बल तथा स्मरणशक्ति दिन प्रतिदिन क्षीण होते जायेंगे | एकमात्र संपत्ति को ही मनुष्य के उत्तम गुणों का लक्षण माना जायेगा | पुरुष तथा स्त्रियाँ केवल उपरी आकर्षण के कारण एकसाथ रहेंगे | जो चिकनी चुपड़ी बातें बनाने में चतुर होगा वह विद्वान् पंडित माना जायेगा | उदर-भरण जीवन का लक्ष्य बन जायेगा | धर्म का अनुसरण मात्र यश के लिए किया जायेगा | शहर में चोरों का दबदबा होगा | राजनैतिक नेता प्रजा का भक्षण करेंगे | व्यापारी लोग क्षुद्र व्यापार में लगे रहेंगे और धोखाधडी से धन कमायेंगे | मनुष्य कंजूस तथा स्त्रियों द्वारा नियंत्रित होंगे | वे अपने पिता, भाई, अन्य सम्बन्धियों तथा मित्रों को त्याग कर साले तथा सालियों की संगति करेंगे | धर्म न जानने वाले उच्च आसन पर बैठेंगे और धार्मिक सिद्धांतों पर प्रवचन करने का ढोंग रचेंगे |

यधपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है | केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबंधन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है:कलियुग केवल नाम आधारा, जपत (सुमिर) जपत (सुमिर)  नर उतरही पारा” | इसी प्रकार कलिसंतरण उपनिषद का कथन है: “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे- ये सोलह नाम जो बत्तीस अक्षरों से बने हैं, कलियुग के दुष्प्रभावो को दूर करने के लिए एकमात्र साधन है |

जिस प्रकार पूरी तरह साफ़ किये बिना बर्तन में रखा गया दूध फट जाता है उसी प्रकार जब तक हम अपने चित्त को श्रीकृष्ण के पवित्र नाम के निरंतर कीर्तन से स्वच्छ नहीं करेंगे तब तक कृष्ण का यह ज्ञान हमारे हृदय में नही ठहरेगा | श्रीकृष्ण के पवित्र नाम के निरअपराध जाप से हृदय पर जन्म जन्मांतर से जमी धूल साफ़ हो जाती है, चित का दर्पण साफ़ हो जाता है (चेतो-दर्पण-मार्जनं) तथा हम अपने आप को शास्वत आत्मा के रूप में देखने लगते हैं और समस्त भौतिक कामनाओ से विरक्ति हो जाती हैं |जिस प्रकार अग्नि सूखी घास को जलाकर राख कर देती है, उसी प्रकार भगवान के पवित्र नाम का जप चाहे जान कर या अनजाने में किया जाता है, यह व्यक्ति के पाप कर्मों के सभी फलों को जलाकर राख कर देता है |

कोई भी व्यक्ति, चाहे वह अशुद्ध अवस्था में ही क्यों न हो, यदि मृत्यु के समय छण-भर के लिए भी अपने मन को भगवान में लीन कर देता है तो उसके सारे पापमय कर्मो के फल भस्म हो जाते हैं | अजामिल ने मरते समय नारायण का नाम अपने पुत्र को बुलाने के लिए किया भगवान का नाम समझकर नहीं फिर भी नारायण के दूतों ने उसे यमराज के दूतों से मुक्ति दिला दी | यदि किसी दवा की प्रभावकारी शक्ति से अनजान व्यक्ति उस दवा को ग्रहण करता है या उसे बलपूर्वक खिलाई जाती है तो यह दवा उस व्यक्ति के जाने बिना ही अपना कार्य करेगी, क्योकि उसकी शक्ति रोगी की जानकारी पर निर्भर नहीं करता।
भगवन्नाम का कीर्तन बड़े से बड़े पापो के फलों को भी उन्मूलित करने में सक्षम है | भगवान के पवित्र नाम का संकीर्तन इतना शक्तिशाली है कि इससे गृहस्थ भी उसी चरम फल को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जो सन्यासियों को प्राप्त होता है | जहाँ भक्तों के बीच भगवान के पवित्र नाम का श्रवण तथा कीर्तन चलता रहता है, वहाँ भगवान नारायण स्वयं उपस्थित रहते है।
श्रीमद्भागवत में भगवान चैतन्य महाप्रभु के विषय में कहा गया है: कलियुग में बुद्धिमान पुरुष कृष्ण-नाम का निरन्तर गायन करने वाले ईश्वर के अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन करते हैं | यधपि उनका रंग श्याम नहीं है, किन्तु वे साक्षात् कृष्ण हैं | उनके साथ उनके पार्षद, सेवक, आयुध तथा विश्वस्त संगी रहते हैं

भगवान चैतन्य महाप्रभु : कृष्ण के पवित्र नाम के कीर्तन मात्र से मनुष्य को भौतिक संसार से छुटकारा मिल सकता है | इस कलियुग में भगवन्नाम के कीर्तन से बढकर अन्य कोई धर्म नहीं है | कलियुग में अर्थात कलह तथा पाखंड के इस युग में उद्धार (मोक्ष ) के लिए, भगवान श्री कृष्ण के पवित्र नाम के जाप के अलावा कोई और उपाय नहीं है, नहीं है, नहीं है |
कीर्तनीय: सदा हरि: अर्थात भगवान कृष्ण के नाम का सदा कीर्तन करो | जो अपने आप को घास से भी अधिक तुच्छ मानता हैजो वृक्ष से भी अधिक सहनशील है और जो किसी के सम्मान की अपेक्षा नहीं रखता फिर भी दूसरों को सम्मान देने के लिए सदा तत्पर रहता है वह सदा भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन सरलता से कर सकता है |

हरे कृष्ण महामंत्र का यह स्वभाव है कि जो कोई भी इसका जप करता है, वह श्री कृष्ण के प्रीति अपनी प्रेमभावना का अति शीघ्र विकास कर लेता है |
 वास्तव में हरे कृष्ण महामंत्र एक प्रार्थना है जिसके द्वारा हम श्री भगवान तथा उनकी अंतरंग शक्ति से निवेदन करते हैं कि वे हमें अपनी सेवा में लगाये | यदि कोई गंभीरता तथा निष्ठा के साथ यह कहता है हे कृष्ण ! यध्यपि इस भौतिक संसार में मैने आपको भुला दिया था, किन्तु आज मै आपकी शरण ग्रहण कर रहा हूँ | कृपया मुझे अपनी सेवा में लगा ले” | तो वह तुरंत माया के पाश से मुक्त हो जाता है |

कलियुग में भगवान कृष्ण ने अपने नाम के रूप में अवतार लिया है |
 इस संसार में काम, क्रोध, लोभ, मोह, घमण्ड और ईर्ष्या जैसे अनर्थ हमारे दुखों के मूल कारण है और हरे कृष्ण महामंत्र इतना शक्तिशाली है कि वह इन सब को समूल नष्ट कर सकता है |

अब हम सबके लिए एक छोटी सी कहानी | एक दिन एक ग्वाला जंगल में गायें चराने गया | वहाँ उसे एक चमकीला पत्थर मिला | वापस आकर उसने उस पत्थर को महाजन को दे कर बदले में गुड ले लिया | दुकानदार ने उसे एक मनिहारे को एक रुपया में बेच दिया | मनिहारे ने अपनी दुकान सजाई और उस चमकीले पत्थर को भी रख दिया | वहाँ से एक जौहरी निकला | उस चमकीले पत्थर को देख कर उसका दाम पूंछा | मनिहारे ने पांच रुपया बताया | जौहरी ने दो,तीन,चार कहा, लेकिन मनिहारे ने कहा कि वह पांच रुपया से एक पैसा भी कम नही लेगा | अंत में जौहरी बोला कि पांच रुपया से एक पैसा कम ले लो | लेकिन वह मनिहारा नहीं माना | वह जौहरी चला गया | कुछ समय बाद एक और जौहरी वहाँ से निकला | उसने भी उस चमकीले पत्थर का दाम पूंछा | मनिहारे ने कहा कि क्या बात है, आज सब इसी पत्थर के दाम पूँछ रहे हैं | इस बार उसने उसका दाम पच्चीस रुपया बताया | उस जौहरी ने तुरंत पच्चीस रुपया दे कर उस चमकीले पत्थर को खरीद लिया | कुछ देर बाद, पहले वाले जौहरी वापस आया और उस पत्थर के बारे में पूंछा | मनिहारे ने कहा कि वह तो उसने पच्चीस रूपये में बेच दिया | जौहरी बोला, अरे मूर्ख वह पत्थर तो एक रत्न था और उसकी कीमत सवा लाख थी | मनिहारा बोला मुझे तो रत्न की पहचान न थी, लेकिन तुम तो जौहरी हो और सिर्फ एक पैसे के लिए तुमने उस सवा लाख के रत्न को छोड़ दिया, मूर्ख तो तुम हो | वह जौहरी पछताता हुआ चला गया | इसी प्रकार हम भी इस मनुष्य जीवन जो अनमोल है तथा हमें भगवत प्राप्ति करा सकता है, इसकी कीमत न जान कर इस जीवन को  इन्द्रिय तृप्ति व भौतिक वस्तुओ में नष्ट करते रहते हैं |

इस संसार के समस्त देहधारियो में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रिय-तृप्ति के लिए दिन-रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योकि ऐसा तो मल खाने वाले सूकर-कूकर भी कर लेते हैं | अनेक जन्मो के पश्चात् व्यक्ति को यह दुर्लभ मनुष्य शरीर प्राप्त होता है,जो अस्थायी होते हुए भी उसे जीवन की सर्वोच्च पूर्णता प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है | अल्प बुद्धि तथा कम आयु वाले आलसी मनुष्य रात को सोने में तथा दिन को व्यर्थ के कार्यो में बिता देते हैं | इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह इस शरीर के द्वारा तब तक जीवन की सर्वोच्च पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास करता रहे जबतक यह शरीर मर कर गिर नहीं जाता | क्योंकि इन्द्रिय भोग तो निम्न योनी के प्राणियों को भी उपलब्ध होता है जबकि कृष्ण-भक्ति केवल मनुष्य शरीर में ही संभव है | मनुष्य को सभी परिस्थितियों में अपने जीवन के असली स्वार्थ (उद्देश्य) को देखना चाहिए और इसीलिए पत्नी, संतान, घर, भूमि, रिश्तेदारों, मित्र, संपत्ति इत्यादि से विरक्त रहना चाहिए |

कृष्ण रूक्मिणी से कहते हैं: विषयी लोग अपने संसारी गृहस्थ जीवन में तपस्या तथा व्रतों द्वारा मेरा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मेरी पूजा करतें हैं | हे मानिनी, वे अभागे हैं, जो मोक्ष तथा भौतिक सम्पदा दोनों के ही स्वामी मुझ को पाकर के भी, केवल भौतिक सम्पदा के लिए ही लालायित रहते हैं ये लाभ तो नरक में भी पाए जा सकते हैं | चूंकि ऐसे व्यक्ति इन्द्रिय-तृप्ति में ही लीन रहते हैं, इसलिए नरक ही उनके लिए उपयुक्त स्थान है | भौतिक वस्तुओं में आसक्ति ही हमारे दुखो की जड़ है दरअसल सर्वोच्च सुख तो समस्त इच्छाओं का परित्याग करने में है जैसा कि पिंगला नामक वैश्या तक ने भी कहा है | यदि हम उन्ही भौतिक वस्तुओ को भगवान कृष्ण की सेवा में लगा सके तो वही भगवदधाम पहुँचने में हमारी सहायता कर सकती हैं | हमें अपने जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना को भगवान कृष्ण की व्यवस्था तथा अपने शुद्धिकरण करने के लिए उनकी कृपा के रूप में देखे | जो व्यक्ति कृष्ण चेतना को पुनः जीवित करने तथा अपना ईश्वर प्रेम बढाने के इच्छुक है, वे ऐसा कुछ नहीं करते जो श्रीकृष्ण से सम्बंधित न हो | वे उनलोगों से मेलजोल नहीं बढ़ाते जो अपने शरीर पालन, भोजन, शयन तथा मैथुन आदि में व्यस्त रहते हैं | वे गृहस्थ होते हुए भी पत्नी, संतान, मित्र अथवा धन में आसक्त नहीं होते किन्तु साथ ही अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने जीवन-निर्वाह के लिए जितना धन चाहिए, उतना ही संग्रह करते हैं |

हमें कृष्ण रूपी सूर्य को अपने हृदयों के भीतर उदय करने का प्रयास करना चाहिए | जिससे माया का अंधकार नष्ट हो सके | मनुष्य जितना अधिक हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करता है उतना ही अधिक कृष्ण के प्रीति प्रेम और सेवा भावना प्रगाढ़ होती है | कृपया अभी से ही श्री कृष्ण के चरण-कमलों की शरण ग्रहण कर लें तथा ह्रदय में कृष्ण के लिए भक्ति व प्रेम का दीपक जला कर हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करना शुरू कीजिये | श्री कृष्ण से अपना सम्बन्ध जोड़ कर ही हम स्थायी आनन्द प्राप्त कर सकते हैं |

स्कन्द 10 को शुकदेव गोस्वामी इस श्लोक से समाप्त करते हैं: नित्यप्रति अधिकाधिक निष्ठापूर्वक भगवान मुकुन्द की सुन्दर कथाओं के नियमित श्रवण, कीर्तन तथा ध्यान से मर्त्य प्राणी को भगवान का दैवीधाम प्राप्त होगा जहाँ मृत्यु की दुस्तर शक्ति का शासन नहीं है | इसी उद्देश्य से अनैक बड़े बड़े राजाओं ने अपने घरों को त्याग कर जंगल की राह ली |
यदि कोई व्यक्ति हृदय के भीतर स्थित परमेश्वर के विषय में सुनता है,उनकी महिमा का गान करता है, उनका ध्यान करता है उनकी पूजा करता है तो भगवान उस व्यक्ति के मन से हजारों जन्मों से संचित कल्मष को दूर कर देते हैं |
हमारे मानसिक कार्य सदैव कृष्ण के चरण-कमलों की शरण ग्रहण करें, हम सदैव उन्हीं के नाम का कीर्तन करें तथा भगवान की इच्छा से हमें अपने सकाम कर्मों के फलस्वरूप इस संसार में जहाँ भी घूमना पड़े हमारे सत्कर्म व दान हमें सदा भगवान कृष्ण का प्रेम प्रदान करे

भौतिक जगत में विचरण करने के लिए बाध्य किये गए देहधारी जीवों के लिए भगवान के संकीर्तन आंदोलन से बढ़ कर और कोई महान लाभ नहीं हैजिसके द्वारा वह परम शांति पा सके और अपने को वारंवार जन्म-मृत्यु के चक्र से छुडा सके।

॥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥

3 टिप्‍पणियां:

  1. Please go back and check Kali-Santarana Upanishad.... it says

    Hare Rama Hare Rama , Rama Rama Hare Hare
    Hare Krishna Hare Krishna , Krishna Krishna Hare Hare

    NOT like you mentioned :
    Hare Krishna Hare Krishna , Krishna Krishna Hare Hare
    Hare Rama Hare Rama , Rama Rama Hare Hare

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    1. go and read sanhat kumar samhita dont read the manipulated scriptures don't comment without reading the scriptures

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  2. Hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare hare ram hare ram ram ram hare hare

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