परम पूज्य
श्रीबाबाजी महाराज की बरसौदी की पूर्व संध्या पर एक ऐसे विषय का निरूपण करने की
चेष्टा कर रहा हंू जो उनके ही श्रीमुख से मैंने सुना था। मूल रूप से विचार बाबाजी
महाराज के हैं, व्याख्या एवं स्पष्टीकरण की शैली मेरी स्वयं की
है।
विषय है- ’पूर्व जन्म एवं पुनर्जन्म’। बाबाजी महाराज
से प्रश्न किया गया था-क्या आपका पूर्व जन्म एवं पूनर्जन्म में विश्वास है ? बाबाजी महाराज ने ’हां’ में उत्तर देते हुए अपने पूर्वजन्म की कहानी बताई एवं
स्पष्ट किया कि जिसका आत्मतत्त्व में विश्वास है, उसका पूर्व जन्म
एवं पुनर्जन्म में भी विश्वास होगा ही। उनका कहना था- समूचा प्राणी जगज दो
अवस्थाओं से गुजरता है। वह जन्म लेता है यह पहली अवस्था है। एक दिन वह मरता है यह
दूसरी अवस्था है। जन्म हमारे प्रत्यक्ष है और मौत भी हमारे प्रत्यक्ष है। जन्म भी
एक घटना है और मौत भी एक घटना है। ये दोनों घटनायें प्रत्यक्ष हैं। हजारों वर्षों
से मनुष्य यह जानने के प्रयत्न करता रहा है कि जन्म से पूर्व और मृत्यु के पश्चात्
क्या ? यह पूर्व और पश्चात् की जिज्ञासा दर्शन के
प्रारम्भिक क्षणों में हो रहीं है। इसका उत्तर उन लोगों ने दिया जो प्रत्यक्ष
ज्ञानी थे, जिनका अपना अनुभव और साक्षात्कार था। उन्होंने
कहा, ’जन्म के पहले भी जीवन होता है और मृत्यु के बाद
भी जीवन होता है। ’यह हमारा वर्तमान का जीवन जो प्रत्यक्ष है, एक मध्यवर्ती विराम है,
जो पहले भी है और
बाद में भी है पूर्वार्द्ध है तभी उतरार्द्ध हो सकता है। जिसका पूर्व नहीं और
पश्चात् नहीं है उसका मध्य कैसे होगा ? यदि मध्य है तो उससे पहले
भी कुछ था और बाद में भी कुछ होगा। अनुभव और प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर उन्होनें
इसका समाधान किया किन्तु जब अनुभव की बात, साक्षात् ज्ञान की बात, प्रत्यक्ष की बात परोक्ष ज्ञानियों तक पहुंचती है तब उसकी
भी मीमांसा प्रारम्भ हो जाती है। कहने वाला प्रत्यक्ष ज्ञानी है, अनुभवयुक्त है और वह अनुभव के आधार पर कह रहा है किन्तु
सामने वाला व्यक्ति परोक्ष ज्ञानी है वह प्रत्यक्ष ज्ञानी के अनुभव को नहीं पकड़
पाता, केवल उसके शब्दों को पकड़ पाता है। वह प्रत्येक
तथ्य को तर्क की कसौटी पर ही स्वीकार करता है।
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