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बुधवार, 30 सितंबर 2015

रातरानी:

रातरानी:
इसके फूल रात में ही खिलकर महकते हैं। एक टब पानी में इसके 15-20 फूलों के गुच्छे डाल दें और टब को शयन कक्ष में रख दें। कूलर व पंखे की हवा से टब का पानी ठंडा होकर रातरानी की ठंडी-ठंडी खुशबू से महकने लगेगा।
सुबह रातरानी के सुगंधित जल से स्नान कर लें। दिनभर बदन में ताजगी का एहसास रहेगा व पसीने की दुर्गंध से भी छुटकारा मिलेगा।
रातरानी की सुगंध से सभी तरह की चिंता, भय, घबराहट आदि सभी मिट जाती है। सुगंध में इसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
अधिकतर लोग इसे अपने घर आंगन में इसलिए नहीं लगाते हैं क्योंकि यह सांप को आकर्षित करती है।

शमी :

शमी :
शमी के पौधे के बारे में तमाम भ्रांतियां मौजूद हैं और लोग आम तौर पर इस पौधे को लगाने से डरते-बचते हैं। ज्योतिष में इसका संबंध शनि से माना जाता है और शनि की कृपा पाने के लिए इस पौधे को लगाकर इसकी पूजा-उपसना की जाती है।
पूजन-लाभ : इसका पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं ओर लगाना शुभ है। शमी वृक्ष के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा।
विजयादशमी के दिन शमी की विशेष पूजा-आराधना करने से व्यक्ति को कभी भी धन-धान्य का अभाव नहीं होता।

पीपल

पीपल
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है |
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है|
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है |
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है |
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए |
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है|
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा |
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है |
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे |
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है |
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है |
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है |
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है |

अनार :

अनार :
अनार एक ऐसा अदभुत और जादुई पौधा है, जिसको लगाने से घर पर तंत्र-मंत्र और नकारात्मक ऊर्जा असर नहीं कर सकते।
ज्योतिष में राहु-केतु को नियंत्रित करने के लिए इस पौधे का प्रयोग करते हैं। यह पौधा इतना महत्वपूर्ण है कि यंत्र लिखने के लिए अनार की कलम का ही प्रयोग किया जाता है।
पूजन-लाभ :
अनार का पौधा घर के सामने लगाएं तो सर्वोत्तम होगा। घर के बीचोबीच पौधा न लगाएं।
अनार के फूल को शहद में डुबाकर नित्यप्रति या फिर हर सोमवार भगवान शिव को अगर अर्पित किया जाए, तो भारी से भारी कष्ट भी दूर हो जाते हैं और व्यक्ति तमाम समस्याओं से मुक्त हो जाता है।

यदि धन संचय नहीं हो रहा हो

छोटी-छोटी बातें हमारे संस्कार के रूप में भी आदतों में शामिल होनी चाहिए। यह उपाय टोटके नहीं है बल्कि बुजुर्गों के अनुभवों से प्राप्त उपयोगी संकलन है।
अगर पर्याप्त पैसा कमाने के बाद भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शनिवार को कड़वे तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोटी खिलाएं।
क्या ना करें – शाम के समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है। सोने से पूर्व पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए, किन्तु गीले पैर नहीं सोना चाहिए। इससे धन का नाश होता है।
रात में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात के भोजन में नहीं करना चाहिए।
भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर के करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए।
सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
घर में देवी-देवताओं पर चढ़ाये गये फूल या हार के सूख जाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।
अपने घर में पवित्र नदियों का जल संग्रह कर के रखना चाहिए। इसे घर के ईशान कोण में रखने से अधिक लाभ होता है।

घर के माहौल को पवित्र बनाने के लिए

घर के माहौल को पवित्र बनाने के लिए शास्त्रों में एक फायदेमंद उपाय बताया गया है।
वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाए रखने के लिए घर में शास्त्रोक्त धुआं करना चाहिए। यह कोई सामान्य धुआं नहीं है। इसके लिए निम्न सामग्री का उपयोग किया जाता है। बाजार से किसी भी पूजन सामग्री की दुकान से लोबान, कपूर, गुगल, देशी घी और चंदन लेकर आएं। प्रतिदिन घर के मंदिर में भगवान की विधिवित पूजा-आरती के बाद गाय के गोबर से बने कंडे या उपले को जलाएं। अब थोड़ा लोबान, कपूर, गुगल, देशी घी और चंदन उस पर रख दें। जब धुआं होने लगे तब इस धुएं को पूरे घर में फैलाएं।
इस धुएं के प्रभाव से घर के वातावरण में मौजूद सभी सुक्ष्म कीटाणु नष्ट हो जाएंगे, हवा में पवित्र सुगंध फैल जाएगी। इसके अलावा घर की सभी नेगेटिव एनर्जी निष्क्रीय हो जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाएगा। आपके आसपास का वातावरण पूरी तरह पवित्र और शुद्ध हो जाएगा। प्रतिदिन ऐसा होने पर सभी देवी-देवताओं की कृपा आप पर बनी रहेगी।

वास्तु शुद्धि के सरल उपाय

वास्तु शुद्धि के सरल उपाय
शुभ वास्तु के लिए फेंग शुई आदि विदेशी उपाय अपनाने के बजाये स्वदेशी उपाय आजमाए . चाइनीज़ लोग स्वयं तामसिक आहार जैसे कीड़े मकोड़े , कुत्ते , घोड़े सब खाते है . तो वे वास्तु शुद्धि के सात्विक उपाय कैसे दे सकते है ?
वे अक्सर महंगे होते है और इनसे लाभ कितना मिलता है ये भी संदेहास्पद है . इसलिए ये स्वदेशी , सस्ते और टिकाऊ उपाय आजमाए .
१. घर में तुलसी के पौधे लगायें |
२. घर एवं आसपास के परिसर को स्वच्छ रखें |
३. घर में नियमित गौ मूत्र का छिड़काव करें | पतंजलि के फीनाइल में गोमूत्र भी है उसका इस्तेमाल किया जा सकता है |
४. घर के अंदर सप्ताह में दो दिन कच्चे नीम पत्ती की धूनी जलाएं |
५. घर में कंडे को प्रज्ज्वलित कर धुना एवं लोबान से धूप दिखाएँ | आसाराम बापू जी के ऋषि प्रसाद नामक दुकानों में जो धुप मिलती है वह गाय के गोबर से निर्मित है उसकी सुगंध अद्भुत है| पतंजलि की अगरबत्ती यज्ञ सुगंध भी यज्ञ सामग्री से निर्मित है |
६. घर के चारों दीवार पर वास्तु शुद्धि की सात्त्विक नाम जप की पट्टियाँ लगाएँ |
७. संतों के भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नाम जप की ध्वनि चक्रिका (C.D) चलायें |
८. घर में मृत पितर के चित्र अपनी दृष्टिके सामने न रखें |
९. घर में कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं अतः क्लेश से कष्ट और बढ़ता है एवं धन का नाश होता है |
१० घर में सत्संग प्रवचन का आयोजन करें | अतिरिक्त स्थान घर में हो, तो धर्म-कार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु, उस स्थानको किसी संत या गुरु के कार्य हेतु अर्पण करें |
११. संतों के चरण घरमें पड़ने से, घरकी वास्तु १०% तक शुद्ध हो जाती है अतः संतो के आगमन हेतु अपनी अपनी भक्ति बढ़ाएं |
१२. प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें, घर के सदस्यों के मात्र प्रसन्नचित्त रहने से घर की ३०% तक वास्तु की शुद्धि हो जाती है |
१३॰ घरमें अधिक से अधिक समय, सभी कार्य करते हुए नामजप , स्तोत्र आदि का पाठ करें |
१४. सुबह और संध्या समय घर के सभी सदस्य मिलकर पूजा स्थलपर आरती करें |
१५. घर के पर्दे, दीवार, चादर इत्यादि के रंग काले, बैंगनी या गहरे रंगके न हों यह ध्यान रखें!

कौडिय़ां- समस्या का समाधान-

कौडिय़ां- समस्या का समाधान-
यह समुद्र से निकलती हैं और सजावट के काम भी आती हैं। तंत्र शास्त्र के अंतर्गत धन प्राप्ति के लिए
किए जाने वाले अनेक टोटकों में इसका प्रयोग किया जाता है। कौडिय़ों के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
1- यदि प्रमोशन नहीं हो रहा है तो 11 कौडिय़ां लेकर किसी लक्ष्मी मंदिर में अर्पित कर दें। आपके
प्रमोशन का रास्ते खुल जाएंगे।
2- यदि दुकान में बरकत नहीं हो रही है तो दुकान के गल्ले में 7 कौडिय़ां रखें और सुबह-शाम
इनकी पूजा करें। निश्चित ही बरकत होने लगेगी।
3- यदि आप नया घर बनवा रहे हैं तो उसकी नींव में 21 कौडिय़ां डाल दें। ऐसा करने से आपके घर
में कभी पैसों की कमी नहीं रहेगी और घर में सुख-शांति भी बनी रहेगी।
4- अगर आपने नया वाहन खरीदा है तो उस पर 7 कौडिय़ां एक काले धागे में पिरोकर बांध दें।
इससे वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना कम हो जाएगी।

कैरियर में सफलता के लिए

अध्ययन कक्ष में इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए कि बच्चों का पढ़ाई के प्रति रूझान बढ़े एंव मन एकाग्र होकर अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो सके।
1- घर में अध्ययन कक्ष ईशान कोण अथवा पूर्व या उत्तर दिशा में बनवाना चाहिए। अध्ययन कक्ष शौचालय के निकट कदापि न बनवायें।
2- पढ़ने की टेबल पूर्व या उत्तर दिशा में रखें तथा पढ़ते समय मुख उत्तर या पूर्व की दिशा में ही होना चाहिए। इन दिशाओं की ओर मुख करने से सकारात्मक उर्जा मिलती है जिससे स्मरण शकित बढ़ती है एंव बुद्धि का विकास होता है।
3- पढ़ने वाली टेबल को दीवार से सटा कर न रखें। पढ़ते वक्त रीढ़ को हमेशा सीधा रखें। लेटकर या झुककर नहीं पढ़ना चाहिए। पढ़ने की सामग्री आखों से लगभग एक फीट की दूरी पर रखनी चाहिए।
4- अध्ययन कक्ष में हल्के रंगों का प्रयोग करें। जैसे- हल्का पीला, गुलाबी, आसमानी, हल्का हरा आदि।
5- राति्र को आधिक देर तक नहीं पढ़ना चाहिए क्योंकि इससे तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध, दृषिट दोष, पेट रोग आदि समस्यायें होने की प्रबल आशंका रहती है। ब्रहममुहूर्त या प्रात:काल में 4 घन्टे अध्ययन करना राति्र के 10 घन्टे के बराबर होता है। क्योंकि प्रात:काल में स्वच्छ एंव सकारात्मक ऊर्जा संचरण होती है जिससे मन व तन दोनों स्वस्थ्य रहते हैं।
6- अध्ययन कक्ष में किताबों की अलमारी को पूर्व या उत्तर दिशा में बनायें तथा उसकी सप्ताह में एक बार साफ-सफार्इ अवश्य करनी चाहिए। अलमारी में गणेश जी की फोटो लगाकर नित्य पूजा करनी चाहिए।
7-बीएड, प्रशासनिक सेवा, रेलवे, आदि की तैयारी करने वाले छात्रो का अध्ययन कक्ष पूर्व दिशा में होना चाहिए। क्योंकि सूर्य सरकार एंव उच्च पद का कारक तथा पूर्व दिशा का स्वामी है।
8- बीटेक, डाक्टरी, पत्रकारिता, ला, एमसीए, बीसीए आदि की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रो का अध्ययन कक्ष दक्षिण दिशा में होना चाहिए तथा पढ़ने वाली मेज आग्नेय कोण में रखनी चाहिए। क्योंकि मंगल अगिन कारक ग्रह है एंव दक्षिण दिशा का स्वामी है।
9- एमबीए, एकाउन्ट, संगीत, गायन, और बैंक की आदि की तैयारी करने वाले छात्रों का अध्ययन कक्ष उत्तर दिशा में होना चाहिए क्योंकि बुध वाणी एंव गणित का संकेतक है एंव उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।
10- रिसर्च तथा गंभीर विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों का अध्ययन कक्ष पशिचम दिशा में होना चाहिए क्योंकि शनि एक खोजी एंव गंभीर ग्रह है तथा पशिचम दिशा का स्वामी है। यदि उपरोक्त छोटी-2 सावधानियां रखी जायें तो निशिचत तौर पर आप कैरियर में सफलता के सोपान रच सकते हैं।

धन प्राप्ति के लिए

धन लाभ के लिए :
शनिवार की शाम को माह (उड़द) की दाल के दाने पर थोड़ी सी दही और सिंदूर डालकर पीपल के नीचे रख आएं। वापस आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। यह क्रिया शनिवार को ही शुरू करें और 7 शनिवार को नियमित रूप से किया करें, धन की प्राप्ति होने लगेगी।




अगर चाहते हैं कभी ना हो पैसों की कमी….
कुछ वास्तु नियम ऐसे होते हैं जिनका पालन ना करने पर घर में पैसों की कमी हमेशा बनी रहती है। आमदनी से अधिक खर्च ऐसे घरों की आम समस्या होती है। यदि आप चाहते हैं कि आपको कभी पैसों की कमी ना हो तो नीचे लिखे वास्तुटिप्स जरूर अपनाएं।
- सोने के कमरे में, और खासकर विवाहित जोड़े के कमरे में, पूजाघर कदापि न बनाएं।
- यदि स्थानाभाव के कारण ऐसा करना ही पड़े, तो पूजास्थल को हर तरफ से पर्दे में रखें।
- पूजा-स्थान सदा साफ-सुथरा रखना चाहिए। इसे उत्तर-पूर्व अर्थात ईशान कोण – पूजा-घर में कीमती वस्तुएं, धन आदि छिपाकर न रखें।
- अलमारियां खिड़की के बाहर से दिखाई न दें।
- चेक बुक, बैंक और व्यापार के कागजात, नकद, आभूषण आदि अलमारी की तिजोरी में इस प्रकार रखें कि वह दक्षिण या नैर्ऋत्य की ओर न खुले अन्यथा धन की हानि होगी।
- तिजोरी शयनकक्ष में नहीं रखें। यदि रखनी ही हो, तो दक्षिण भाग में इस तरह रखें कि उसका मुंह उत्तर अर्थात कुबेर की दिशा की ओर खुले, धन लाभ होगा।




अगर आप पैसों की कमी से जुझ रहे है। घर में आमदनी से अधिक खर्च आपके लिए अक्सर मानसिक तनाव का कारण बन जाता है तो नीचे लिखे वास्तुप्रयोग अपनाकर आप मां लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।
- साल में एक दो-बार हवन करें।
- घर में अधिक कबाड़ एकत्रित ना होने दें।
- शाम के समय एक बार पूरे घर की लाइट जरूर जलाएं। इस समय घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है।
- सुबह-शाम सामुहिक आरती करें।
- महीने में एक या दो बार उपवास करें।
- घर में हमेशा चन्दन और कपूर की खुशबु का प्रयोग करें।
- जो व्यक्ति श्रेष्ठ धन की इच्छा रखते हैं वे रात्रि में सत्ताइस हकीक पत्थर लेकर उसके ऊपर लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें, तो निश्चय ही उसके घर में अधिक उन्नति होती है।
- किसी शुक्रवार के दिन रात्रि में पूजा उपासना करने के पश्चात एक सौ आठ बार ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करें। धन से जुड़ी हर समस्या हल हो जाएगी।


काली हल्दी को सिंदूर और धूप देकर तथा चांदी का सिक्का लाल कपड़े में लपेट कर धन स्थान पर रखें। शीघ्र ही कहीं से धन आगमन की सूचना मिलेगी।


अचानक धन प्राप्ति के लिए बरगद की जटा में अपनी मनोकामना कहते हुए गांठ लगा दें। प्राप्त हो जाए तो गांठ खोल दें।


जल की निकासी ठीक करे :
बहुत से लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं कि उनके घर का पानी किस दिशा में निकल रहा है। वास्तु विज्ञान के अनुसार जल की निकासी कई चीजों को प्रभावित करती है। जिनके घर में जल की निकासी दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में होती है उन्हें आर्थिक समस्याओं के साथ अन्य कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उत्तर दिशा एवं पूर्व दिशा में जल की निकासी आर्थिक दृष्टि से शुभ माना गया है।
 

घर में आमदनी अच्छी होने के बावजुद भी हमेशा धन की कमी

अगर आप के घर में आमदनी अच्छी होने के बावजुद भी हमेशा धन की कमी बनी रहती हो। पैसा टिकता ना हो तो नीचे लिखे वास्तु उपाय अपनाएं। इन उपायों से आपके घर में लक्ष्मी स्थाई रूप से निवास करने लगेगी।
- घर के उत्तर पूर्व में शीशे की बोतल में जल भरकर रखने से तथा इस जल का सेवन एक दिन पश्चात करने से घर वालों का स्वास्थ्य सही रहता है।
- सुबह एवं शाम सम्पूर्ण घर में कपूर का धुंआ लगाने से वास्तु दोषों में कमी आती है।
- भवन का मध्य भाग खुला रखने से परिवार में सभी सदस्य मेल जोल से रहते हैं।
- धन लाभ के लिये चारदीवारी की दक्षिणी एवं पश्चिमी दीवार उत्तर एवं पूर्व से ऊंची एवं मजबूत रखें।
- घर के उत्तर में द्वार व खिड़कियाँ रखना से धनागमन होता है।
- भूखण्ड के उत्तर पूर्व में अण्डरग्राउण्ड पानी का टैंक रखने से स्थिर व्यवसाय एवं लक्ष्मी का वास होता है।
- उत्तर पूर्व के अण्डरग्राउण्ड टैंक से रोजाना पानी निकाल कर पेड़ पौधे सीचने से धन वृद्धि होती है।
- भवन के उत्तर पूर्व का फर्श सबसे नीचा होना चाहिए तथा दक्षिण पश्चिम का फर्श सबसे ऊंचा रखने से आय अधिक, व्यय कम रहता है। भूखण्ड के उत्तर में चमेली के तेल का दीपक जलाने से धन लाभ होता है।
- भवन के मुख्यद्वार को सबसे बड़ा रखना चाहिए यह सबसे सुंदर भी होना चाहिए। मुख्यद्वार के ऊपर गणेश जी बैठाने से घर में सभी प्रकार की सुख सुविधा रहती है।
- घर में यदि पॉजिटीव ऊर्जा नहीं हो तो रोजाना नमक युक्त पानी का पौंछा लगाना चाहिए। भूखण्ड के उत्तर पूर्व में साबुत नमक की डली रखने से भी घर में पॉजिटीव ऊर्जा का संचालन होता है। इसे 4-5 दिन में बदलते रहना चाहिए।
- अपने ड्राइंग रूम के उत्तरी पूर्व में फिश एक्वेरियम रखें। ऐसा करने से धन लाभ होता है।

टोटका

पान में गुलाब के फुल की सात पंखुड़ियों को रखकर पान को को किसी देवी
माता के मन्दिर में चढ़ा दें ।
आपको अचानक से आपकी सोंच से परे धन प्राप्ति होगी ।
गुलाब के फूल में एक कपूर का छोटा सा टुकड़ा रखें । शाम के समय फूल में
रखा कपूर जला दें और फूल को माताजी को चढ़ा दें ।
इस उपाय से आपको अचानक अतुलनीय धन की प्राप्ति हो सकती है ।


पीपल के नीचे सरसों तेल का दीपक लगातार 41 दिन तक प्रज्ज्वलित करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
तिल के तेल का दीपक 41 दिन लगातार पीपल के नीचे प्रज्ज्वलित करने से असाध्य रोगों में अभूतपूर्व लाभ मिलता है और रोगी स्वस्थ हो जाता है।
किसी रोगी को शनिवार के शनिवार पीपल के वृक्ष के नीचे लिटाने से उसका रोग धीरे-धीरे दूर होता जाता है।


संतान सुख
मालती के फूल व सफेद सरसों का प्रतिदिन सेवन करने से संतान प्राप्ति में आ रही बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
नित्य ग्यारह दिन चने व गेहूं के आटे में हल्दी मिश्रित करके गाय को खिलाएं, संतान प्राप्ति का सुख अवश्य ही प्राप्त होगा।
किसी बच्चे के पहली बार टूटने वाले दांत मंगलवार के दिन यदि कोई निःसंतान स्त्री अपने कमर में बांधे तो संतान प्राप्ति में हो रहा अवरोध खत्म हो जाता है।
मृगशिरा नक्षत्र में पड़ने वाले मंगलवार के दिन लाल धागे में पीली कौड़ी डालकर यदि कोई निःसंतान स्त्री अपने कमर में बांधे तो अवश्य ही संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त होगा।



धन हानि, दुर्घटना से रक्षा हेतु टोटके
केले के वृक्ष की जड़ गुरुवार के दिन सोने के ताबीज में भरकर पीले धागे के साथ गले में धारण करें।
पीले कनेर के फूल रोजाना गुरु प्रतिमा या चित्र पर चढ़ायें।
गुरुवार के दिन पीले वस्त्र मंदिर में दान करें।
चमेली के 9 फूल 9 गुरुवार लगातार बहती नदी में बहायें।


धन लाभ हेतु
शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार के दिन चांदी की डिब्बी में नागकेशर, काली हल्दी व सिंदूर को रखकर अपने धन स्थान पर स्थापित करें, अवश्य ही लाभ की प्राप्ति होगी।
ग्यारह गोमती चक्रों को एक नीले रेशमी वस्त्र में लपेटकर धन स्थान पर रखें व उसके समक्ष घी के दीपक को प्रज्ज्वलित करें, धन समृद्धि का विकास होता रहेगा।
कृष्ण पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करके नित्य सात शनिवार को घर के मुख्य द्वार पर सरसों के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करें तथा फिर प्रातः बाद में बुझे दीपक के शेष तेल पीपल के वृक्ष पर अर्पित कर दें, आर्थिक समृद्धि बनी रहेगी।
पीले वस्त्र में कस्तूरी लपेटकर अपनी तिजोरी या धन स्थान में रखें, धन वृद्धि होती रहेगी।
शनिवार के दिन स्वयं व परिवार के सभी सदस्यों के सिर से काले तिल को सात बार उतारकर अपने घर के उत्तर दिशा की ओर फेंक दें, निरंतर चली आ रही आर्थिक हानि शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी।
प्रत्येक अमावस्या की संध्या किसी विकलांग जातक को भोजन कराएं, आर्थिक लाभ की निरंतरता बनी रहेगी।
आर्थिक समृद्धि हेतु घर में तोते अवश्य ही पालें।
श्मशान के कुएं या चापाकल ((HANDPUMP))से नित्य छः शनिवार जल लाकर पीपल के वृक्ष पर अर्पित करें। स्वयं पर चढ़ा ऋण शीघ्र ही उतरने लगेगा।
नौ गुरूवार के दिन गुड़ को दरिया की जलधारा में प्रवाहित करें, आर्थिक समृद्धि में आ रही बाधा शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी।



वशीकरण / सम्मोहन

सफेद गुंजा की जड़ को घिस कर माथे पर तिलक लगाने से सभी लोग वशीभूत हो जाते हैं।
यदि सूर्य ग्रहण के समय सहदेवी की जड़ और सफेद चंदन को घिस कर व्यक्ति तिलक करे तो देखने वाली स्त्री वशीभूत हो जाएगी।
राई और प्रियंगु को ÷ह्रीं' मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके किसी स्त्री के ऊपर डाल दें तो वह वश में हो जाएगी।
शनिवार के दिन सुंदर आकृति वाली एक पुतली बनाकर उसके पेट पर इच्छित स्त्री का नाम लिखकर उसी को दिखाएं जिसका नाम लिखा है। फिर उस पुतली को छाती से लगाकर रखें। इससे स्त्री वशीभूत हो जाएगी।
बिजौरे की जड़ और धतूरे के बीज को प्याज के साथ पीसकर जिसे सुंघाया जाए वह वशीभूत हो जाएगा।
नागकेसर को खरल में कूट छान कर शुद्ध घी में मिलाकर यह लेप माथे पर लगाने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
नागकेसर, चमेली के फूल, कूट, तगर, कुंकुंम और देशी घी का मिश्रण बनाकर किसी प्याली में रख दें। लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका तिलक लगाते रहने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
शुभ दिन एवं शुभ लग्न में सूर्योदय के पश्चात उत्तर की ओर मुंह करके मूंगे की माला से निम्न मंत्र का जप शुरू करें। ३१ दिनों तक ३ माला का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्ध करके वशीकरण तंत्र की किसी भी वस्तु को टोटके के समय इसी मंत्र से २१ बार अभिमंत्रित करके इच्छित व्यक्ति पर प्रयोग करें। अमुक के स्थान पर इच्छित व्यक्ति का नाम बोलें। वह व्यक्ति आपके वश में हो जाएगा। मंत्र इस प्रकार है -
ऊँ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुक महीपति मे वश्यं कुरू कुरू स्वाहा।
रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाएं। फिर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें। इस काजल को रात में अपनी आंखें में लगाने से समस्त जग वश में हो जाता है। ऐसा काजल किसी को नहीं देना चाहिए।
अनार के पंचांग में सफेद घुघची मिला-पीसकर तिलक लगाने से समस्त संसार वश में हो जाता है।
कड़वी तूंबी (लौकी) के तेल और कपड़े की बत्ती से काजल तैयार करें। इसे आंखों में लगाकर देखने से वशीकरण हो जाता है।
बिल्व पत्रों को छाया में सुखाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। इसका तिलक करके साधक जिसके पास जाता है, वह वशीभूत हो जाता है।
कपूर तथा मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक लगाने से साधक को जो भी देखता है, वह वशीभूत हो जाता है।
केसर, सिंदूर और गोरोचन तीनों को आंवले के साथ पीसकर तिलक लगाने से देखने वाले वशीभूत हो जाते हैं।
श्मशान में जहां अन्य पेड़ पौधे न हों, वहां लाल गुलाब का पौधा लगा दें। इसका फूल पूर्णमासी की रात को ले आएं। जिसे यह फूल देंगे, वह वशीभूत हो जाएगा। शत्रु के सामने यह फूल लगाकर जाने पर वह अहित नहीं करेगा।
अमावस्या की रात्रि को मिट्टी की एक कच्ची हंडिया मंगाकर उसके भीतर सूजी का हलवा रख दें। इसके अलावा उसमें साबुत हल्दी का एक टुकड़ा, ७ लौंग तथा ७ काली मिर्च रखकर हंडिया पर लाल कपड़ा बांध दें। फिर घर से कहीं दूर सुनसान स्थान पर वह हंडिया धरती में गाड़ दें और वापस आकर अपने हाथ-पैर धो लें। ऐसा करने से प्रबल वशीकरण होता है।
प्रातःकाल काली हल्दी का तिलक लगाएं। तिलक के मध्य में अपनी कनिष्ठिका उंगली का रक्त लगाने से प्रबल वशीकरण होता है।
कौए और उल्लू की विष्ठा को एक साथ मिलाकर गुलाब जल में घोटें तथा उसका तिलक माथे पर लगाएं। अब जिस स्त्री के सम्मुख जाएगा, वह सम्मोहित होकर जान तक न्योछावर करने को उतावली हो जाएगी।

ग्रह पीडा निवारन के लिये हनुमत साधना

ग्रह पीडा निवारन के लिये हनुमत साधना :-
भगवान् हनुमान की सामर्थ्य तो जग विख्यात हैं , और उनकी कृपा से तो जीवन की समस्त वाधाओ का निर्मूलन होता हैं .
साधना के नियम इस प्रकार हैं :
१.लाल आसन पर लाल वस्त्र धारण कर के बैठे
२. दिशा पूर्व या उत्तर कोई भी हो सकती हैं
३. प्रात: काल का समय कही जयादा अच्छा होगा
४. जप लाल मूंगा की माला से करे और सामने सदगुरुदेव और हनुमान जी का चित्र अवश्य हो .
५. सदगुरुदेव का पूजन कर उनसे मानसिक आज्ञा प्राप्त कर ले किसी भी मगल वार या शनि वार से यह प्रयोग प्रारंभ कर सकते हैं .
६. और आपको सवा लाख मंत्र जप करना हैं .इसमे दिन निर्धारित नहीं हैं फिर भी ११ या २१ दिनों में करे . फिर दसवा हिस्सा हवन करना हैं अगर यह नहीं हो पाए तो जितना मंत्र जप किया हैं उसका एक चौथाई मंत्र जप और कर सकते हैं.
७.साधना काल में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे .
मंत्र :- ” ॐ ह्राँ सर्व दुष्ट ग्रह निवारणाय स्वाहा || “

नवरात्रों पूजा के साथ साथ देवी मां की हवन का विशिष्ट महत्व है

नवरात्रों पूजा के साथ साथ देवी मां की हवन का विशिष्ट महत्व है :
नवरात्रों में पूजा के साथ साथ देवी के निमित्त हवन करने का विशिष्ट महत्व है और सर्वकामना पूरक माना जाता है इस हवन को | यद्धपि अधिकांश परिवारों में जलते हुए कंडे पर लौंग के जोड़े, गुग्गल, घी और हवन सामग्री डालकर ही देवी की ज्योति जलाई जाती है |
जहाँ तक शास्त्रीय विधान का प्रश्न है बालू की वेदी बनाकर और उसे आटे से सजाकर ढाक की लकड़ियाँ रख दीजिये | धूप की कटोरी बनाकर उसमें कपूर रखकर प्रज्वलित करने के बाद एक सौ आठ आहुतियाँ दी जाती हैं और अंत में सूखे गोले में हवन सामग्री भरकर पूर्णाहुति दी जाती है |
हवन सामग्री तैयार करने हेतु काले बिना धुले तिल, तिलों के आधे चावल, चौथाई जौ और आठवां भाग बुरा अथवा चीनी मिलाएं | इस मिश्रण में इच्छानुसार अगर, तगर, चन्दन का बुरादा, जटामांसी, इंद्रजौ तथा अन्य जड़ी बूटियाँ आदि मिला लीजिये | थोडा सा देसी घी भी इस सामग्री में मिलाया जाएगा और प्रत्येक आहुति के साथ चम्मच से थोडा -थोडा घी हवन में डाला जाएगा |
पूर्णाहुति के लिए साबूत गिरी के गोले की टोपी उतारकर उसमे पान का पत्ता, सुपारी और उपरोक्त मिश्रण तथा घी भरकर टोपी लगा दें और इसे सीधा ही अग्नि के मध्य में रख दें |
सभी आहुतियाँ दुर्गा नवार्ण मंत्र एवं दुर्गा सप्तशती के श्लोको के द्वारा दी जाती हैं | पहली बार किसी कुशल ब्राहमण के सहयोग एवं मार्गदर्शन यह पवित्र यज्ञ संपन्न करें |

अष्ट सिद्धियाँ

अष्ट सिद्धियाँ
1. अणिमा – जिसके पास ये सिद्धि होती है वो व्यक्ति अपने शरीर को अनु या एटम जितना छोटा बना सकता है l
2. महिमा – इस सिद्धि से व्यक्ति अपने शरीर को जितना चाहे बड़ा बना सकता है l
3. गरिमा – इस सिद्धि से व्यक्ति अपने शरीर को जितना चाहे उतना भारी कर सकता है l
4. लघिमा – इस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को बिलकुल हल्का बना सकता है l
5. प्राप्ति – इस सिद्धि से व्यक्ति किसी भी स्थान में बिना रोक टोक जा सकता है l
6. प्राकाम्य – इस सिद्धि को प्राप्त करने से मनुष्य जिस भी चीज की इच्छा करता है वो उसे प्राप्त कर लेता है l
7. इशित्वा – इस सिद्धि की प्राप्ति से मनुष्य किसी भी व्यक्ति पर स्वामित्व प्राप्त करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है
8. वशित्वा – इस सिद्धि को प्राप्त करने से मनुष्य हर प्रकार के युद्ध में विजय प्राप्त करता है l
देवी माँ सिद्धिदात्री की कृपा से इन 8 सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है
जय माता दी
देवी दुर्गा जी के नौवें रूप का नाम देवी सिद्धिधात्री है , वे सभी प्रकार की सिद्धियों को देने में समर्थ हैं मार्कंडेय पुराण के अनुसार आठ प्रकार की सिद्धियाँ होती हैं : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्वा, वाशित्वा l इनकी पूजा करने से साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है साधक का संपूर्ण जगत पर अधिकार हो जाता है उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता l

नवरात्रि में कैसे करें देवी मां की पूजा

नवरात्रि में कैसे करें देवी मां की पूजा !
नवरात्रि आराधना का श्रेष्ठ फल पाने का अवसर होता है। हर राशि के लोगों के लिए नवरात्रि में अलग-अलग देवी की उपासना बताई गई है। जिससे वे अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए सही पूजा पाठ कर सकें।
हर राशि के ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर उनकी अलग-अलग देवियां मानी गई हैं। दश महाविद्या के मुताबिक हर राशि के लिए एक अलग महाविद्या की उपासना करने से, उनके बीज मंत्रों के जप से किसी भी काम में आसानी से सफलता पाई जा सकती है।
मेष- मेष राशि के जातक शक्ति उपासना के लिए द्वितीय महाविद्या तारा की साधना करें। ज्योतिष के अनुसार इस महाविद्या का स्वभाव मंगल की तरह उग्र है। मेष राशि वाले महाविद्या की साधना के लिए इस मंत्र का जप करें।
मंत्र-ह्रीं स्त्रीं हूं फट्
वृषभ- वृषभ राशि वाले धन और सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री विद्या यानि षोडषी देवी की साधना करें और इस मंत्र का जप करें।
मंत्र-ऐं क्लीं सौ:
मिथुन- अपना गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के लिए मिथुन राशि वाले भुवनेश्वरी देवी की साधना करें। साधना मंत्र इस प्रकार है।
मंत्र- ऐं ह्रीं
कर्क- इस नवरात्रि पर कर्क राशि वाले कमला देवी का पूजन करें। इनकी पूजा से धन व सुख मिलता है। नीचे लिखे मंत्र का जप करें।
मंत्र- ऊं श्रीं
सिंह – ज्योतिष के अनुसार सिंह राशि वालों को मां बगलामुखी की आराधना करना चाहिए। जिससे शत्रुओं पर विजय मिलती है।
मंत्र- ऊं हृी बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिहृं कीलय कीलय बुद्धिं विनाशाय हृी ऊं स्वाहा
कन्या- आप चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी की साधना करें आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।
मंत्र- ऐं ह्रीं ऐं
तुला- तुला राशि वालों को सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए षोडषी देवी की साधना करनी चाहिए।
मंत्र- ऐं क्लीं सौ:
वृश्चिक- वृश्चिक राशि वाले तारा देवी की साधना करें। इससे आपको शासकीय कार्यों में सफलता मिलेगी।
मंत्र- श्रीं ह्रीं स्त्रीं हूं फट्
धनु – धन और यश पाने के लिए धनु राशि वाले कमला देवी के इस मंत्र का जप करें।
मंत्र- श्रीं
मकर- मकर राशि के जातक अपनी राशि के अनुसार मां काली की उपासना करें।
मंत्र- क्रीं कालीकाये नम:
कुंभ- कुंभ राशि वाले भी काली की उपासना करें इससे उनके शत्रुओं का नाश होगा।
मंत्र- क्रीं कालीकाये नम:
मीन- इस राशि के जातक सुख समृद्धि के लिए कमला देवी की उपासना करें।
मंत्र- श्री कमलाये नम:

पाप कहां कहां तक

। पाप कहां कहां तक ।
एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते है,
तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी .
अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ?
तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए , ऋषि ने पूछा कि
भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ?
भगवन ने कहा कि # पार्थ चलो गंगा से ही पूछते है , दोनों लोग गंगा के पास गए और
कहा कि , हे गंगे ! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई .
माँ गंगा ने कहा मैं क्यों पापी हुई , मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ ,
अब वे लोग समुद्र के पास गए , हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए . समुद्र ने पार्थ‬ कहा मैं क्यों पापी हुआ , मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ , अब वे लोग बादल के पास गए,
हे बादलो ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है ,
तो इसका मतलब आप पापी हुए . बादलों ने कहा मैं क्यों पापी हुआ ,
मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ , जिससे अन्न उपजता है , जिसको मानव खाता है . उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है ,
जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है ,
उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है
शायद इसीलिये कहते हैं ..” जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन ”
अन्न को जिस वृत्ति ( कमाई ) से प्राप्त किया जाता है
और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है
वैसे ही विचार मानव के बन जाते है।
इसीलिये सदैव भोजन शांत अवस्था में पूर्ण रूचि के साथ
करना चाहिए , और कम से कम अन्न जिस धन से
खरीदा जाए वह धन भी श्रम का होना चाहिए।

रिश्ते और ग्रह-नक्षत्र

रिश्ते और ग्रह-नक्षत्र —
ग्रह नक्षत्र हमारे आपसी रिश्ते-नाते पर
क्या प्रभाव डालते हैं, इस संबंध में लाल किताब में बहुत ‍कुछ
लिखा हुआ है। लाल किताब अनुसार प्रत्येक ग्रह हमारे एक
रिश्तेदार से जुड़ा हुआ है अर्थात् कुंडली में
जो भी ग्रह जहाँ भी स्थित है तो उस
खाने अनुसार वह हमारे रिश्तेदार
की स्थिति बताता है।
1. सूर्य : पिता, ताऊ और पूर्वज।
2. चंद्र : माता और मौसी।
3. मंगल : भाई और मित्र।
4. बुध : बहन, बुआ, बेटी, साली और
ननिहाल पक्ष।
5. गुरु : पिता, दादा, गुरु, देवता।
स्त्री की कुंडली में इसे
पति का प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
6. शुक्र : पत्नि या स्त्री।
7.शनि : काका, मामा, सेवक और नौकर।
8. राहु : साला और ससुर। हालाँकि राहु को दादा का प्रतिनिधित्व
प्राप्त है।
9. केतु : संतान और बच्चे। हालाँकि केतु
को नाना का प्रतिनिधी माना जाता है।
ठीक इसके विपरीत लाल किताब
का विशेषज्ञ रिश्तेदारों की स्थिति जानकर
भी ग्रहों की स्थिति जान सकता है।
ग्रहों को सुधारने के लिए रिश्तों को सुधारने की बात
कही जाती है अर्थात् अपने रिश्ते
प्रगाढ़ करें।
अंतत: यह माना जा सकता है
कि कुंडली का प्रत्येक भाव किसी न
किसी रिश्ते का प्रतिनिधित्व करता है तथा प्रत्येक
ग्रह मानवीय रिश्तों से संबंध रखता है।
यदि कुंडली में कोई ग्रह कमजोर हो तो उस ग्रह
से संबंधित रिश्तों को मजबूत करके भी ग्रह
को दुरुस्त किया जा सकता है।
दूसरी ओर ग्रहों को मजबूत करके
भी किसी रिश्तों को मजबूत
तो किया ही जा सकता है। साथ ‍ही वे
रिश्तेदार भी खुशहाल हो सकते हैं, जैसे कि बहन
को किसी भी प्रकार का दुख-दर्द है
तो आप अपने बुध ग्रह को दुरुस्त करने का उपाय करें

नशा नियंत्रण प्रयोग

नशा नियंत्रण प्रयोग
:
मंगलवार संध्या निमंत्रण देकर बुधवार सुबह को अपामार्ग की जड़ लावे |
गंगाजल से धोकर हरे वस्त्र पर स्थापित करे |
बुध की प्राणप्रतिष्ठा तथा पंचोपचार पूजन करे |
" ओम बुं बुधाय नम:" मंत्र की ११ माला जाप करे |
कपूर से आरती कर हरे धागे में बांधे एवं धारण करे |
२१ दिन तक ३ काली मिर्च तथा काला नमक अपामार्ग की जड़ के साथ पीस कर सेवन करे |
शरीर में स्तिथ विष का शमन होता है तथा नशे से विकर्षण होता है
|
निमंत्रण : एक अगरबत्ती, गुड एवं जल लेकर जाये ..गुड जड़ में रख कर जल दे और अगरबत्ती लगा दे..और प्रार्थना करे की कल सुबह आपको लेने आएंगे | जड़ को लोहे के अस्त्र से ना काटे .
नोट : इच्छा शक्ति भी प्रबल करनी होगी इस उपाय को करने के लिए ..
***************************************
अदरक के टुकड़े करके उसके काला नमक लगा के धुप में सुखा दे । जब तक उनके अंदर की नमी न चली जाए।
. एक दम सुख के कड़क हो जाने चाहिए।।।।।
फिर इन टुकड़ो को किसी बंद ज़ार में भर दो एक दम पैक । हवा नहीं लगने देनी।
… तीन दिन BAD… जब भी जिसे भी नशा करने की तलब लगे उसे चूसने को दो। ।
मुह में रखे चूसे अदरक के टुकड़े को। .
तब भी तलब लगे। ।
धीरे धीरे। । नशा की आदत जाती रहेगी।

शनिवार, 19 सितंबर 2015

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र
 
ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।
एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।
 
‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।
 
किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं।

माँ कामकलाकाली का गद्य सहस्त्रनाम

माँ कामकलाकाली का गद्य सहस्त्रनाम 
 
श्रीमद् आदिनाथ द्वारा रचित बहुत ही दुर्लभ माँ कामकलाकाली के सहस्त्र नाम का मंत्ररूप गद्य प्रस्तुत है । इसका प्रभाव यह है कि इस भौतिक संसार में ऐसा कोई कार्य नही है जो पूर्ण न हो सकता हो । इसके अर्थ को समझते हुए बहुत ही विनीत भाव से माँ का ध्यान कर इसका पाठ करे, तो मनोवांछित प्रत्येक फल संभव है । इसके साथ में अर्थ भी स्पष्ट किया हुआ है ताकि आपको अपूर्णता का अहसास न हो । 
 
महाकाल ने कहा- हे महेशानि! अब में संजीवन के रुप में स्थित एवं महापाप नाशक गद्य-सहस्त्रनाम को बताऊंगा जिसे पढने वाला व्यक्ति हे प्रिये! प्राक्तन समस्त जन्मो को सफल बना लेता है तथा नही पढने वाले का समस्त जन्मकर्म विफल रहता है, उस पाठ को में तुमसे कह रहा हूँ ।

पाठ-
ॐ फ्रें जय जय कामकलाकालि कपालिनि सिद्धि-करालि, सिद्धि-विकरालि, महा-बलिनि, त्रिशुलिनि, नर-मुंड-मालिनि, शव-वाहिनि, कात्यायिनि, महाsटटाहासिनि, सृष्टि-स्थिति-प्रलय कारिणि, दिति-दनुज-मारिणि, श्मशान-चारिणि । महाघोररावे अध्यासित-दावे, अपरिमित-बल-प्रभावे । भैरवी-योगिनि-डाकिनी सह-वासिनि जगद्धासिनि स्व-पद-प्रकाशिनि । पापौघ-हारिणि आपदुद्धारिणि अप-मृत्यू-वारिणि । बृहन्मद्य-मानोदरि, सकल-सिद्धिकरि चतुर्दश-भुवनेश्वरि । गुनातीत-परम-सदाशिव मोहिनि अपवर्ग-रस-दोहिनि, रक्तार्णव-लोहिनि । अष्ट-नागराज भूषित-भुजदण्डे आकृष्ट-कोदण्डे परम-प्रचण्डे । मनोवागगोचरे मुखकोटि मंत्रमय कलेवरे ।महाभीषण-तरे प्रचल-जटाभार-भास्वरे सजल-जलद-मेदुरे जन्म-मृत्यु-पाशभिदुरे सकल-दैवत-मय-सिंहासनाधिरूढ़े । गुह्याति-गुह्य-परापर-शक्तितत्तरूढ़े वांगमयी-कृतमूढ़े । प्रकृत्य-पर-शिव-निर्वाण-साक्षिणि, त्रिलोकीरक्षिणि दैत्यदानव भक्षिणि । विकट-दीर्घ-दंष्ट्र-संचूर्णित-कोटिब्रह्मकपाले, चन्द्र-खण्डांकितभाले देहप्रभाजित-मेघजाले । नवपंचचक्र-नयिनि महाभीमषोडश-शयिनि, सकल कुलाकुल चक्र-प्रवर्तिनि, निखिल-रिपुदल-कर्त्तिनि महामारी-भय-निवर्त्तिनि, लेलिहान-रसना करालिनि त्रिलोकीपालिनि त्रय-स्त्रिंशत्कोटि-शस्त्रास्त्रशालिनि । प्रज्वल-प्रज्वलन-लोचने, भवभयमोचने निखिलागमादेशित रोचने । प्रपंचातीत-निष्कल-तुरीयाकारे, अखण्डाsनंदाधारे निगमागमसारे । महाखेचरीसिद्धिविधायिनि निजपदप्रदायिनि घोराट्टाहास संत्रासित त्रिभुवने चरणकमलद्वयविन्यास खर्वी-कृतावने विहितभक्तावने । 
 
अर्थ:- ॐ फ्रें जय जय कामकलाकालि, अपने हाथ में कपाल धारण करने वाली, सिद्धिकराली, सिद्धिविकराली, महाबलशाली, त्रिशुलिनी, नरमुंडो की माला धारण करने वाली, शव पर आरूढ़, कत गोत्र में प्रकटी, महा अट्टहास करने वाली, सृष्टि-स्थिति-प्रलय करने वाली, दैत्यों और दानवों का विध्वंस करने वाली, श्मशान में विचरण करने वाली, अपने तेजोमय रुप से महाघोर शब्द उत्पन्न करने वाली, दावाग्नि का अहसास कराने वाली, अपरिमित बल और अपरिमित प्रभाव वाली, भैरवी, योगिनी और डाकिनी के साथ रहने वाली विश्व को प्रसन्न रखने वाली, अपने पद को प्रकाशित करने वाली, पाप-समूह को नष्ट करने वाली, आपत्ति से उद्धार करने वाली, अपमृत्यु को दूर करने वाली, विस्तारित एवं मद से पूर्ण उदर वाली, समस्त सिद्धि प्रदान करने वाली, चौदह भुवनो की स्वामिनी, गुनातीत भगवान परम शिव को आकर्षित करने वाली, मुक्तिरस का दोहन करने वाली, खून के रंग के समान लाल वर्ण वाली, अपनी भुजाओ में आठ नागराज धारण करने वाली, धनुष खीचकर तैयार रखने वाली, परम प्रचण्ड मन और वाणी की अगोचर, करोडो यज्ञ एवं मंत्रमय देह वाली, महाभीषण, चलती हुई जटा के भार से काले बादलों के समान प्रतीत होती काली, जीवन-मृत्यु के पाश से विमुक्त करने वाली, सभी देवों से युक्त सिंहासन पर विराजित, गुह्य-अतिगुह्य, पर-अपर शक्ति तत्व वाली, मुर्ख को वक्ता बना देने वाली, प्रकृति एवं अपर शिव के निर्वाण की साक्षी, त्रेलोक्य की रक्षक, दैत्य और दानवों का भक्षण करने वाली, विकट एवं लम्बे दांतों से करोडो ब्रह्मा के कपालों को चूर्ण कर देने वाली, भाल पर चंद्रखंड से सुशोभित, शरीर की कान्ति से बादलों की चमक को पराजित कर देने वाली, चौदह चक्र, नव चक्र और पांच चक्रों की अधिष्ठात्री, षोडश मातृकाओं की आधारभूता, समस्त कुल-अकुल चक्र का प्रारंभ करने वाली, समस्त शत्रुओं की नाशक, महामारी के डर को हटाने वाली, लपलपाती हुई जीभ के कारण भयंकर, त्रिजगत की पालनहारा, तैंतीस करोड़ अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित, जलती अग्नि जैसे नेत्रों वाली, भवभय से मुक्त करने वाली, समस्त आगमों में रूचि रखने वाली, प्रपंच से परे निष्कल तुरीय आकार वाली, अखण्ड आनंद की आधार, निगम और आगम की सार, महाखेचरी की सिद्धि प्रदान करने वाली, अपना पद प्रदान करने वाली, महामायाविनी, घोर अट्टाहास से त्रिभुवन को भयभीत कर देने वाली, दोनों चरणों के न्यास से पृथ्वी को छोटी कर देने वाली, अपने भक्तो की रक्षा करने वाली ( आपको नमस्कार है ) ।

ॐ क्लीं क्रों स्फ्रों हूं ह्रीं छ्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हंस हंस नृत्य नृत्य क छ भगमालिनि भगप्रिये भगातुरे भगांकिते भगरूपिणि भगप्रदे भग-लिंग-द्राविणि । संहारभैरवसुरतरसलोलुपे व्योमकेशि पिंगकेशि महाशंखसमाकुले खर्परविहस्तहस्ते रक्तार्णवद्वीपप्रिये मदनोन्मादिनि । शुष्कनरकपालमालाभरणे विद्युतकोटिसमप्रभे नरमांस खण्ड कवलिनि । वमदग्निमुखि फेरु-कोटि-परिवृते कर-तालिका-त्रासित-त्रिविष्टपे । नृत्य-प्रसारित-पादाघात परिवर्तित-भूवलये । पद-भाराव-नम्रीकृत-कमठ-शेषा-भोगे । कुरुकुल्ले कुंच-तुण्डि रक्तमुखि यमघंटे चच्चिर्के दैत्यासुर दैत्य राक्षस-दानव-कुष्माण्ड-प्रेत-भूत-डाकिनी-विनायक-स्कन्द घोणक क्षेत्रपाल-पिशाच-ब्रह्मराक्षस-वेताल-गुह्यक-सर्प-नाग ग्रह-नक्षत्र उत्पात चौराग्नि स्वापद युद्ध वज्रोपलाश निवर्ष विद्युन्मेघ विषोप-विषकपट कृत्या अभिचार द्वेष वशीकरण उच्चाटन उन्माद अपस्मार भूतप्रेत पिशाचवेशन नदी समुद्र आवर्त कान्तार्घोर अन्धकार महामारी बालग्रह हिंस्त्र सर्वस्वापहारि माया विद्युत् दस्यु वंचक दिवाचर रात्रिचर संध्याचर श्रृन्गि नखि दंष्ट्री विद्युत उल्का अरण्यदर प्रान्तरादि नानाविध महोपद्रव भंजनि, सर्वमंत्रतंत्रयंत्र कुप्रयोग प्रमद्दिनि षडाम्नाय समय विद्या प्रकाशिनि श्मशाना ध्यासिनि । निजबल प्रभाव पराक्रम गुण वशीकृत कोटि ब्रह्माण्डवर्ति भूतसंघे । विराड़रुपिणि सर्वदेव महेश्वरि सर्वजन मनोरंजनि सर्वपाप प्रणाशिनि अध्यात्मिकाधि दैविक आधिभौतिक आदि-विविध ह्रदयादि-निर्ददलिनी कैवल्य निर्वाण बलिनि दक्षिणकालि भद्रकालि चण्डकालि कामकलाकालि कौलाचार व्रतिनि कौलाचार कूजिनि कुलधर्म साधनि जगतकारणकारिणि महारौद्रि रौद्रवतारे अबीजे नानाबीजे जगदबीजे कालेश्वरि कालातीते त्रिकालस्थायिनि महाभैरव भैरवगृहिणि जननि जन-जनन-निवर्तिनि प्रलय-अनल-ज्वाला-ज्वालजिह्वे विखर्वोरु फेरुपोत लालिनि मृत्युंजय ह्रदयानंदकरि विलोल व्याल कुण्डल उलूक पक्षच्छत्र महाडामरि नियुक्त-वक्त्र-बाहुचरणे सर्वभूत दमनि नीलांजन समप्रभे योगीन्द्रह्रदयाम्बुजासन स्थित नीलकंठ-देहार्द्धहारिणि षोडश-कलांत-वासिनि हकारार्द्धचारिणि काल-संकर्षिणि कपालहस्ते मद-घूर्णित-लोचने निर्वाण दीक्षा-प्रसादप्रदे निन्दाsनंद-अधिकारिणि मातृगण-मध्यचारिणि त्रयस्त्रि-शत-कोटि-त्रिदश-तेजोमय-विग्रहे प्रलयाग्निरोचिनि विश्व कर्त्रि विश्वाराध्ये विश्व जननि विश्व-संहारिणि विश्व-व्यापिके विश्वेश्वरि निरुपमे निर्विकारे निरंजने निरीहे निस्तरंगे निराकारे परमेश्वरि परमानन्दे परात्परे प्रकृति-पुरुषात्मिके प्रत्ययगोचरे प्रमाणभूते प्रणवस्वरुपे संसारसारे सच्चिदानंदे सनातनि सकले सकल कलातीते सामरस्य-समयिनि केवले कैवल्यरुपे कल्पनातिगे काललोपिनि कामरहिते कामकलाकालि भगवति ।

अर्थ:- ॐ क्लीं क्रों स्फ्रों हूं ह्रीं छ्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हस हस नृत्य नृत्य क छ भगमालिनी भगप्रिये भगातुरे भगांकिते भगरूपिणी भगप्रदे भग और लिंग को द्रवित करने वाली, संहार भैरव के साथ सूरत करने से उत्पन्न आनंद की लोलुप, शिव की भार्या, पिंगकेश वाली, नरकपाल से आवृता, हाथ में खप्पर लिए हुए, रक्त समुद्र और रक्त द्वीप के प्रति आसक्त, कामदेव को उन्मत्त करने वाली, सूखे हुए नरकपालो के आभूषण धारण करने वाली, करोडो बिजली के समान चमक वाली, मनुष्य के मांस को ग्रहण करने वाली, मुख से अग्नि का वमन करने वाली, करोडों गिदडियो से घिरी हुई, हाथ की ताली मात्र से स्वर्ग को कंपा देने वाली, नृत्य के लिए फैलाये गये पैर के आघात से पृथ्वी को मोड़ देने वाली, पैर के भार से कच्छप और शेषनाग के फन को झुका देने वाली, कुरुकुल्ले जैसे संकुचित मुख वाली, रक्त से भरे हुए मुख वाली, यमघंटा चच्चिर्का दैत्य असुर दैत्यराक्षस दानव कुष्माण्ड प्रेत भूत डाकिनी विनायक स्कन्द घोणक क्षेत्रपाल पिशाच ब्रह्मराक्षस बेताल, गुह्यक सर्प नाग ग्रह-नक्षत्र के उत्पात चोर अग्नि जंतु से युद्ध वज्र उपल अशनि की वर्षा विद्युत् मेघ विष उपविश कपटपन अभिचार द्वेष वशीकरण उच्चाटन उन्माद मिर्गी भूत प्रेत पिशाच का आवेश नद-नदी समुद्र के चारों ओर के घने जंगल अंधकार महामारी बालग्रह हिंसक सर्वस्व का अपहरण करने वाले मायावी डाकू ठग लुटेरे चोर सन्ध्याचर सींग नख दांत वाले जीव, विद्युत उल्का अरण्य उसके समीप का स्थान आदि अनेक प्रकार के उपद्रव का नाश करने वाली, समस्त मंत्र-तन्त्र-यंत्र के दुष्प्रयोग को नष्ट करने वाली, समस्त आम्नाय के सिद्धान्त और ज्ञान का प्रकाश करने वाली, श्मशान-निवासिनी, अपने बल, प्रभाव, पराक्रम और गुणों के कारण असंख्य ब्रह्माण्डो में रहने वाले प्राणियों को वश में करने वाली, विराट-स्वरूपा, समस्त देवों की अधिश्वरी, समस्त जनों का मनोरंजन करने वाली, सभी के पापों को नष्ट करने वाली, आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिवैदिक आदि द्वारा विविध ह्रदय की पीड़ा का नाश करने वाली, कैवल्य निर्वाण प्रदान करने वाली दक्षिण काली, भद्र काली, चंड्काली, कामकलाकाली, कौलाचार व्रत करने वाली, कौलाचार का प्रचार करने वाली, कुलधर्म की साधना करने वाली, जगत के कारण की कारण, महारौद्री, स्वयम्भू, नानाबीज, जगत की कारणभूता, काल की स्वामिनी, काल से परे, त्रिकाल-स्थापिनी, महाभयंकर, भैरव की भार्या, जननी, मनुष्य के जन्मबन्धन को हरने वाली, प्रलय-अग्नि की ज्वाला के समूह के समान जिह्वा वाली, छोटी जंघाओ वाली, सियार के बच्चे का पालन करने वाली, महादेव मृत्युंजय के ह्रदय को प्रसन्न करने वाली, चंचल सर्प का कुण्डल और उल्लू के पंखों का छत्र धारण करने से महाभयंकर, दश हजार करोड़ मुख, बाहु और चरनों वाली, समस्त भूतों का दमन करने वाली, नीली स्याही के समान प्रभा वाली, योगियों के ह्रदय-कमल-रूपी आसन पर स्थित नीलकंठ भगवान् की अर्धदेह को धारण करने वाली, सोलह कलाओ के अंत अर्थात् अमृताकला में निवास करने वाली, 'ह' कार के अर्घ यानि विसर्ग में संचरण करने वाली, काल-संकर्षिणी, हाथ में कपाल धारण करने वाली, मद से मस्त नेत्रों वाली, निर्वाण दीक्षा रूपी प्रसाद प्रदान करने वाली, निंदा और आनंद दोनों की अधिकारिणी, मातृसमूह के मध्य में विचरण करने वाली, तैतीस करोड़ देवताओं के तेज की देह वाली, प्रलयकाल में उत्पन्न अग्नि के समान कान्ति वाली, सृष्टि का संहार करने वाली, विश्व द्वारा पूजिता, सृष्टि की रचना करने वाली, सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त, विश्व की ईश्वरी, उपमा-रहित विकारशून्य कलंकवर्जित इच्छारहित निस्तरंग निराकार परमेश्वरी परम आनंदस्वरूपा परापरा प्रकृति-स्वरूपा ध्यान से जान जाने वाली, प्रमाण स्वरूपा, ओंकार स्वरूपा, संसार की तत्वभूत सत-चित-आनन्दस्वरूपा, सनातनी, कलायुक्ता, सम्पूर्ण कलाओ से परे, सामरस्य सिद्धान्त वाली, केवल, केवल्यरुपा, कल्पनातीत काल का लोप करने वाली, कामरहित माँ कामकलाकाली भगवती ( आपको नमस्कार है ) ।

ॐ ख्फ्रें हसौ: सौ: श्रीं ऐं ह्रौं क्रों स्फ्रों सर्वसिद्धिं देहि-देहि मनोरथान् पूरय-पूरय मुक्तिं नियोजय-नियोजय भवपाशं समुन्मूलय-समुन्मूलय जन्ममृत्यु तारय-तारय परविद्यां प्रकाशय-प्रकाशय अपवर्गं निर्माहि-निर्माहि संसारदुखं यातनां विच्छेदय-विच्छेदय पापानि संशमय-संशमय चतुवर्गं साधय-साधय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं यान् वयं द्विष्मो ये चास्मान् विद्विषन्ति तान् सर्वान् विनाशय-विनाशय मारय-मारय शोषय-शोषय क्षोभय-क्षोभय मयि कृपां निवेशय-निवेशय फ्रें ख्फ्रें ह्स्फ्रें ह्स्ख्फ्रें हूं स्फ्रों क्लीं ह्रीं जय-जय चर-अचरात्मक-ब्रह्माण्ड-उदरवर्ति-भूत-संघाराधिते प्रसीद-प्रसीद तुभ्यं देवि नमस्ते-नमस्ते-नमस्ते ।
 
अर्थ:- ॐ ख्फ्रें हसौ: सौ: श्रीं ऐं ह्रौं क्रों स्फ्रों सर्वसिद्धि प्रदान करे, प्रदान करे, मेरे मनोरथ पूर्ण करे, पूर्ण करे, मुक्ति प्रदान करे, प्रदान करे, भवपाश से मुक्त करे, मुक्त करे, जन्ममृत्यु से पार करे, पार करे, दुसरो की विद्या का प्रदर्शन करे, प्रदर्शन करे, अपवर्ग से उबारे, उबारे, संसारदुःख की यातना को दूर करे, दूर करे, पापों का नाश करे, नाश करे, चतुवर्ग का साधन करे, साधन करे, ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं, जो मुझसे द्वेष रखते हो, उन सबका विनाश करो, विनाश करो, मारों मारों, शोषण करो, शोषण करो, क्षोभण करो, क्षोभण करो, मुझ पर कृपा करो, कृपा करो, फ्रें ख्फ्रें ह्स्फ्रें ह्स्खफ्रें हूं स्फ्रों क्लीं ह्रीं जय जय चराचरात्मक-ब्रह्माण्ड-उदरवर्ति-भूत-संघाराधिते प्रसीद-प्रसीद तुभ्यं देवि नमस्ते-नमस्ते-नमस्ते । ( देवि! आपको बारम्बार-बारम्बार नमस्कार है ) ।

कामेश्वरीस्तुतिः

नमस्ते परमेशानि ब्रह्मरूपे सनातनि सुरासुरजगद्वंदे कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 1 ॥
न ते प्रभावं जानन्ति ब्रह्माद्यास्त्रिदशेश्वराः प्रसीद जगतामाद्ये कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 2 ॥
अनादिपरमा विद्या देहिनां देहधारिणी त्वमेवासि जगद्वन्दे कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 3 ॥
त्वं बीजं सर्वभूतानां त्वं बुध्दिश्चेतनाधृतिः त्वं प्रबोधश्च निद्रा च कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 4 ॥
त्वमाराध्य महेशोऽपि कृतकृत्यं हि मन्यते आत्मानं परमात्माऽपि कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 5 ॥
दुर्वृत्तवृत्तसंहर्त्रि पापपुण्यफलप्रदे लोकानां तापसंहर्त्रि कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 6 ॥
त्वमेका सर्वलोकानां सृष्टिस्थित्यंतकारिणी करालवदने कालि कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 7 ॥
प्रपन्नार्तिहरे मातः सुप्रसन्नमुखाम्बुजे। प्रसीद परमे पूर्णे कामेश्वरी नमोस्तुते॥8 ॥
त्वामाश्रयन्ति ये भक्त्या यान्ति चाश्रयन्ता तु जगतां त्रिजगद्धात्रि कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 9 ॥
शुद्धज्ञानमये पूर्णे प्रकृतिः सृष्टिभाविनी। त्वमेव मातर्विश्वेशि कामेश्वरी नमोस्तुते ॥ 10 ॥
॥ इति श्री महाभागवते महापुराणे युधिष्ठिरकृता कामेश्वरीस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

विशेष आपदा में

“ॐ श्री महाञ्जनाय पवन-पुत्र-वेशयावेशय ॐ श्रीहनुमते फट् ।”
यह २५ अक्षरों का मन्त्र है इसके "ऋषि ब्रह्मा, छन्द गायत्री, देवता हनुमानजी, बीज श्री और शक्ति फट्" बताई गई है । छः दीर्घ स्वरों से युक्त बीज से षडङ्गन्यास करने का विधान है । इस मन्त्र का ध्यान इस प्रकार है -

आञ्जनेयं पाटलास्यं स्वर्णाद्रिसमविग्रहम् ।
परिजातद्रुमूलस्थं चिन्तयेत् साधकोत्तम् ।।
 (नारद पुराण ७५-१०२)

इस प्रकार ध्यान करते हुए साधक को एक लाख जप करना चाहिए । तिल, शक्कर और घी से दशांश हवन करें और श्री हनुमान जी का पूजन करें । यह मंत्र ग्रह-दोष निवारण, भूत-प्रेत दोष निवारण में अत्यधिक उपयोगी है ।

विशेष आपदा में आप स्वम या किसी योग्य पुरोहित कुल साधक द्वारा अनुश्ठान करा सकते है स्वम करना चाहे तो प्राण प्रतिष्ठत माला यंत्र व् विनियोगादि विधि प्राप्त करके कर सकते है.

सदाशिव प्रासादाख्य मन्त्र कवच -

सदाशिव प्रासादाख्य मन्त्र कवच

विनियोगः 
अस्य प्रासादमंत्रकवचस्य, प्रासादमंत्रदेवस्यवामदेव ऋषिः, पंक्तिश्छन्दः, देवेशः सदाशिवोSत्र देवता, साधकाभिष्टसिद्धौ विनियोगः।
शिरो मे सर्वदा पातु प्रासादाख्यः सदाशिवः ।
षड्क्षरस्वरूपो मे वदनं तु महेश्वरः ।।
अष्टाक्षरशक्तिरूद्रश्चक्षुषी मे सदाSवतु ।
पंचाक्षरात्मा भगवान् भुजौ मे परिरक्षतु ।।
मृत्युंजयस्त्रिबीजात्मा आयु रक्षतु मे सदा ।
वटमूलसमासीनो दक्षिणामूर्तिरव्ययः ।।
सदा मां सर्वत्रः पातु षट् त्रिंशद्वर्णरूपधृक् ।
द्वाविंशार्णात्मको रुद्रः कुक्षिं मे परिरक्षतु ।।
त्रिवर्णाढयो निलकण्ठः कण्ठं रक्षतु सर्वदा ।
चिन्तामणिर्बीजरूपोSर्धनारीश्वरो हरः ।।
सदा रक्षतु मे गुह्यं सर्वसम्पत्प्रदायकः ।
एकाक्षरस्वरूपात्मा कूटव्यापी महेश्वरः ।।
मार्तण्डो भैरवो नित्यं पादौ मे परिरक्षतु ।
तुम्बुराख्यो महाबीजस्वरूपस्त्रिपुरान्तकः ।।
सदा मारणभूमौ च रक्षतु त्रिदशाधिपः ।
उर्ध्वमूर्ध्वानमीशानो मम रक्षतु सर्वदा ।।
दक्षिणास्यं तत्पुरुषोSवतु मे गिरिनायकः ।
अघोराख्यो महादेवः पूर्वास्यं परिरक्षतु ।।
वामदेवः पश्चिमास्यं सदा मे परिरक्षतु ।
उत्तरास्यं सदा पातु सद्योजातस्वरूपधृक् ।।
मृत्युजेता सदा पातु जलेSरण्ये महाभये ।।
पर्वते विषमस्थाने विषहर्ता सदाSवतु ।
कालरुद्रः सदा पातु सर्वांग कालदेवता ।।
कालाग्निरुद्रः सम्पातु महाव्याधिभयादिषु ।
अकालतारकः पातु खड्गधारी सदाशिवः ।।
कवची वामदेवश्च सदा पातु महाभये ।
कालभक्षः पातु रुद्रो रुरुकः क्षेत्रपालकः ।।
मातृकामण्डलं पातु सम्पूर्णचन्द्रशेखरः ।
चिरायुः शाकिनीभर्ता चायुषं पातु मे सदा ।।
सिंहस्कन्धः सदा पातु रुद्राणीवल्लभोSवतु ।
भालं पातु वज्रदम्भालेखकः क्रान्तिरूपकः ।।
निरूपकः सदा पातु खेचरीखेचरप्रियः ।
रत्नमालाधरः पातु रक्तमुख�

ग्रह बाधा से शांति

प्रायः कई लोग देखने में आता है कि आज कल ग्रह बाधा से त्रस्त है अतः उन्हें जब कोई उपाय न समझ में आये तो महाविद्या छिन्नमस्ता की शरण लेकर ग्रह बाधा से शांति लाभ कर सकते है l

देवी की पूजा में इनके भैरव कबंध शिव की पूजन अनिवार्य है l

देवो को यथाशक्ति नेवेद्यदि अलंकार से शिव सहित पूजन कर दीपदान कर 5 माला नित्य करना चाहिए कुछ समय में आपको विशेष लाभ दीखता है l

अनुभव के लिए अपनी समस्या नॉट करे यदि आप को अलप समय में ही समस्या हल होती दिख रही है तो विधिसम्मत पूजन पूर्ण करे .किसी भी मन्त्र को कम से कम सवालाख या कलिकाल के अनुसार चतुर्गुणा जप करे या योग्य आचार्य या कौलाचार्य से सम्पन्न कराये l

देवी छिन्नमस्ता का ग्रहदोष नाशक मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुम

कुलानुसारेन् इनका पूजन अति प्रभावी है अगर आप अदीक्षित है तो बिना दीक्षा के साधना न करे या तो दीक्षा ग्रहण करे या योगय आचार्य से संपन्न कराये.

लक्ष्मी प्राप्ति साधना

लक्ष्मी प्राप्ति साधना

प्रतिदिन एक माला शाम को दिनचर्या में शमिल कर ले जिन्हें धन की समस्या ज्यादा हो, स्वयं अनुभव करे व् अपने अनुभव हमें बताये

मन्त्र पर देवता व् गुरु पर विस्वाश हो तो करे लाभ होने पर निरन्तरता कर माला कमलगट्टा या स्फटटिक माला जाप कीजिये,सामने लक्ष्मी जी का चित्र हो, देशी घी का दीपक जलाये, आसन-वस्त्र का कोई बंधन नहीं है, दिशा पूर्व-पश्चिम उत्तम है, समय रात्रि मे जो भी आपको उपयोगी हो, पूर्ण आनंद के साथ साधना सम्पन्न कीजिये और माँ को भोग में मीठा अर्पित करे

॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै कमलधारिण्यै गरुड वाहिन्यै श्रीं ह्रीं ऐं स्वाहा ॥

भैरवीकवचम्

॥ भैरवीकवचम् ॥
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श्रीगणेशाय नमः । श्रीदेव्युवाच ।
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भैरव्याः सकला विद्याः श्रुताश्चाधिगता मया ।
साम्प्रतं श्रोतुमिच्छामि कवचं यत्पुरोदितम् ॥ १॥
त्रैलोक्यविजयं नाम शस्त्रास्त्रविनिवारणम् ।
त्वत्तः परतरो नाथ कः कृपां कर्तुमर्हति ॥ २॥
ईश्वर उवाच ।
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श्रुणु पार्वति वक्ष्यामि सुन्दरि प्राणवल्लभे ।
त्रैलोक्यविजयं नाम शस्त्रास्त्रविनिवारकम् ॥ ३॥
पठित्वा धारयित्वेदं त्रैलोक्यविजयी भवेत् ।
जघान सकलान्दैत्यान् यधृत्वा मधुसूदनः ॥ ४॥
ब्रह्मा सृष्टिं वितनुते यधृत्वाभीष्टदायकम् ।
धनाधिपः कुबेरोऽपि वासवस्त्रिदशेश्वरः ॥ ५॥
यस्य प्रसादादीशोऽहं त्रैलोक्यविजयी विभुः ।
न देयं परशिष्येभ्योऽसाधकेभ्यः कदाचन ॥ ६॥
पुत्रेभ्यः किमथान्येभ्यो दद्याच्चेन्मृत्युमाप्नुयात् ।
ऋषिस्तु कवचस्यास्य दक्षिणामूर्तिरेव च ॥ ७॥
विराट् छन्दो जगद्धात्री देवता बालभैरवी ।
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ८॥
अधरो बिन्दुमानाद्यः कामः शक्तिशशीयुतः ।
भृगुर्मनुस्वरयुतः सर्गो बीजत्रयात्मकः ॥ ९॥
बालैषा मे शिरः पातु बिन्दुनादयुतापि सा ।
भालं पातु कुमारीशा सर्गहीना कुमारिका ॥ १०॥
दृशौ पातु च वाग्बीजं कर्णयुग्मं सदावतु ।
कामबीजं सदा पातु घ्राणयुग्मं परावतु ॥ ११॥
सरस्वतीप्रदा बाला जिह्वां पातु शुचिप्रभा ।
हस्रैं कण्ठं हसकलरी स्कन्धौ पातु हस्रौ भुजौ ॥ १२॥
पञ्चमी भैरवी पातु करौ हसैं सदावतु ।
हृदयं हसकलीं वक्षः पातु हसौ स्तनौ मम ॥ १३॥
पातु सा भैरवी देवी चैतन्यरूपिणी मम ।
हस्रैं पातु सदा पार्श्वयुग्मं हसकलरीं सदा ॥ १४॥
कुक्षिं पातु हसौर्मध्ये भैरवी भुवि दुर्लभा ।
ऐंईंओंवं मध्यदेशं बीजविद्या सदावतु ॥ १५॥
हस्रैं पृष्ठं सदा पातु नाभिं हसकलह्रीं सदा ।
पातु हसौं करौ पातु षट्कूटा भैरवी मम ॥ १६॥
सहस्रैं सक्थिनी पातु सहसकलरीं सदावतु ।
गुह्यदेशं हस्रौ पातु जनुनी भैरवी मम ॥ १७॥
सम्पत्प्रदा सदा पातु हैं जङ्घे हसक्लीं पदौ ।
पातु हंसौः सर्वदेहं भैरवी सर्वदावतु ॥ १८॥
हसैं मामवतु प्राच्यां हरक्लीं पावकेऽवतु ।
हसौं मे दक्षिणे पातु भैरवी चक्रसंस्थिता ॥ १९॥
ह्रीं क्लीं ल्वें मां सदा पातु निऋत्यां चक्रभैरवी ।
क्रीं क्रीं क्रीं पातु वायव्ये हूँ हूँ पातु सदोत्तरे ॥ २०॥
ह्रीं ह्रीं पातु सदैशान्ये दक्षिणे कालिकावतु ।
ऊर्ध्वं प्रागुक्तबीजानि रक्षन्तु मामधःस्थले ॥ २१॥
दिग्विदिक्षु स्वाहा पातु कालिका खड्गधारिणी ।
ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट् सा तारा सर्वत्र मां सदावतु ॥ २२॥
सङ्ग्रामे कानने दुर्गे तोये तरङ्गदुस्तरे ।
खड्गकर्त्रिधरा सोग्रा सदा मां परिरक्षतु ॥ २३॥
इति ते कथितं देवि सारात्सारतरं महत् ।
त्रैलोक्यविजयं नाम कवचं परमाद्भुतम् ॥ २४॥
यः पठेत्प्रयतो भूत्वा पूजायाः फलमाप्नुयात् ।
स्पर्धामूद्धूय भवने लक्ष्मीर्वाणी वसेत्ततः ॥ २५॥
यः शत्रुभीतो रणकातरो वा भीतो वने वा सलिलालये वा ।
वादे सभायां प्रतिवादिनो वा रक्षःप्रकोपाद् ग्रहसकुलाद्वा ॥ २६॥
प्रचण्डदण्डाक्षमनाच्च भीतो गुरोः प्रकोपादपि कृच्छ्रसाध्यात् ।
अभ्यर्च्य देवीं प्रपठेत्रिसन्ध्यं स स्यान्महेशप्रतिमो जयी च ॥ २७॥
त्रैलोक्यविजयं नाम कवचं मन्मुखोदितम् ।
विलिख्य भूर्जगुटिकां स्वर्णस्थां धारयेद्यदि ॥ २८॥
कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ त्रैलोक्यविजयी भवेत् ।
तद्गात्रं प्राप्य शस्त्राणि भवन्ति कुसुमानि च ॥ २९॥
लक्ष्मीः सरस्वती तस्य निवसेद्भवने मुखे ।
एतत्कवचमज्ञात्वा यो जपेद्भैरवीं पराम् ।
बालां वा प्रजपेद्विद्वान्दरिद्रो मृत्युमाप्नुयात् ॥ ३०॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले देवीश्वरसंवादे त्रैलोक्यविजयं नाम भैरवी कवचं समाप्तम् ॥