माँ कामकलाकाली का गद्य सहस्त्रनाम
श्रीमद् आदिनाथ द्वारा रचित बहुत ही दुर्लभ माँ कामकलाकाली के सहस्त्र नाम का मंत्ररूप गद्य प्रस्तुत है । इसका प्रभाव यह है कि इस भौतिक संसार में ऐसा कोई कार्य नही है जो पूर्ण न हो सकता हो । इसके अर्थ को समझते हुए बहुत ही विनीत भाव से माँ का ध्यान कर इसका पाठ करे, तो मनोवांछित प्रत्येक फल संभव है । इसके साथ में अर्थ भी स्पष्ट किया हुआ है ताकि आपको अपूर्णता का अहसास न हो ।
महाकाल ने कहा- हे महेशानि! अब में संजीवन के रुप में स्थित एवं महापाप नाशक गद्य-सहस्त्रनाम को बताऊंगा जिसे पढने वाला व्यक्ति हे प्रिये! प्राक्तन समस्त जन्मो को सफल बना लेता है तथा नही पढने वाले का समस्त जन्मकर्म विफल रहता है, उस पाठ को में तुमसे कह रहा हूँ ।
पाठ-
ॐ फ्रें जय जय कामकलाकालि कपालिनि सिद्धि-करालि, सिद्धि-विकरालि, महा-बलिनि, त्रिशुलिनि, नर-मुंड-मालिनि, शव-वाहिनि, कात्यायिनि, महाsटटाहासिनि, सृष्टि-स्थिति-प्रलय कारिणि, दिति-दनुज-मारिणि, श्मशान-चारिणि । महाघोररावे अध्यासित-दावे, अपरिमित-बल-प्रभावे । भैरवी-योगिनि-डाकिनी सह-वासिनि जगद्धासिनि स्व-पद-प्रकाशिनि । पापौघ-हारिणि आपदुद्धारिणि अप-मृत्यू-वारिणि । बृहन्मद्य-मानोदरि, सकल-सिद्धिकरि चतुर्दश-भुवनेश्वरि । गुनातीत-परम-सदाशिव मोहिनि अपवर्ग-रस-दोहिनि, रक्तार्णव-लोहिनि । अष्ट-नागराज भूषित-भुजदण्डे आकृष्ट-कोदण्डे परम-प्रचण्डे । मनोवागगोचरे मुखकोटि मंत्रमय कलेवरे ।महाभीषण-तरे प्रचल-जटाभार-भास्वरे सजल-जलद-मेदुरे जन्म-मृत्यु-पाशभिदुरे सकल-दैवत-मय-सिंहासनाधिरूढ़े । गुह्याति-गुह्य-परापर-शक्तितत्तरूढ़े वांगमयी-कृतमूढ़े । प्रकृत्य-पर-शिव-निर्वाण-साक्षिणि, त्रिलोकीरक्षिणि दैत्यदानव भक्षिणि । विकट-दीर्घ-दंष्ट्र-संचूर्णित-कोटिब्रह्मकपाले, चन्द्र-खण्डांकितभाले देहप्रभाजित-मेघजाले । नवपंचचक्र-नयिनि महाभीमषोडश-शयिनि, सकल कुलाकुल चक्र-प्रवर्तिनि, निखिल-रिपुदल-कर्त्तिनि महामारी-भय-निवर्त्तिनि, लेलिहान-रसना करालिनि त्रिलोकीपालिनि त्रय-स्त्रिंशत्कोटि-शस्त्रास्त्रशालिनि । प्रज्वल-प्रज्वलन-लोचने, भवभयमोचने निखिलागमादेशित रोचने । प्रपंचातीत-निष्कल-तुरीयाकारे, अखण्डाsनंदाधारे निगमागमसारे । महाखेचरीसिद्धिविधायिनि निजपदप्रदायिनि घोराट्टाहास संत्रासित त्रिभुवने चरणकमलद्वयविन्यास खर्वी-कृतावने विहितभक्तावने ।
अर्थ:- ॐ फ्रें जय जय कामकलाकालि, अपने हाथ में कपाल धारण करने वाली, सिद्धिकराली, सिद्धिविकराली, महाबलशाली, त्रिशुलिनी, नरमुंडो की माला धारण करने वाली, शव पर आरूढ़, कत गोत्र में प्रकटी, महा अट्टहास करने वाली, सृष्टि-स्थिति-प्रलय करने वाली, दैत्यों और दानवों का विध्वंस करने वाली, श्मशान में विचरण करने वाली, अपने तेजोमय रुप से महाघोर शब्द उत्पन्न करने वाली, दावाग्नि का अहसास कराने वाली, अपरिमित बल और अपरिमित प्रभाव वाली, भैरवी, योगिनी और डाकिनी के साथ रहने वाली विश्व को प्रसन्न रखने वाली, अपने पद को प्रकाशित करने वाली, पाप-समूह को नष्ट करने वाली, आपत्ति से उद्धार करने वाली, अपमृत्यु को दूर करने वाली, विस्तारित एवं मद से पूर्ण उदर वाली, समस्त सिद्धि प्रदान करने वाली, चौदह भुवनो की स्वामिनी, गुनातीत भगवान परम शिव को आकर्षित करने वाली, मुक्तिरस का दोहन करने वाली, खून के रंग के समान लाल वर्ण वाली, अपनी भुजाओ में आठ नागराज धारण करने वाली, धनुष खीचकर तैयार रखने वाली, परम प्रचण्ड मन और वाणी की अगोचर, करोडो यज्ञ एवं मंत्रमय देह वाली, महाभीषण, चलती हुई जटा के भार से काले बादलों के समान प्रतीत होती काली, जीवन-मृत्यु के पाश से विमुक्त करने वाली, सभी देवों से युक्त सिंहासन पर विराजित, गुह्य-अतिगुह्य, पर-अपर शक्ति तत्व वाली, मुर्ख को वक्ता बना देने वाली, प्रकृति एवं अपर शिव के निर्वाण की साक्षी, त्रेलोक्य की रक्षक, दैत्य और दानवों का भक्षण करने वाली, विकट एवं लम्बे दांतों से करोडो ब्रह्मा के कपालों को चूर्ण कर देने वाली, भाल पर चंद्रखंड से सुशोभित, शरीर की कान्ति से बादलों की चमक को पराजित कर देने वाली, चौदह चक्र, नव चक्र और पांच चक्रों की अधिष्ठात्री, षोडश मातृकाओं की आधारभूता, समस्त कुल-अकुल चक्र का प्रारंभ करने वाली, समस्त शत्रुओं की नाशक, महामारी के डर को हटाने वाली, लपलपाती हुई जीभ के कारण भयंकर, त्रिजगत की पालनहारा, तैंतीस करोड़ अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित, जलती अग्नि जैसे नेत्रों वाली, भवभय से मुक्त करने वाली, समस्त आगमों में रूचि रखने वाली, प्रपंच से परे निष्कल तुरीय आकार वाली, अखण्ड आनंद की आधार, निगम और आगम की सार, महाखेचरी की सिद्धि प्रदान करने वाली, अपना पद प्रदान करने वाली, महामायाविनी, घोर अट्टाहास से त्रिभुवन को भयभीत कर देने वाली, दोनों चरणों के न्यास से पृथ्वी को छोटी कर देने वाली, अपने भक्तो की रक्षा करने वाली ( आपको नमस्कार है ) ।
ॐ क्लीं क्रों स्फ्रों हूं ह्रीं छ्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हंस हंस नृत्य नृत्य क छ भगमालिनि भगप्रिये भगातुरे भगांकिते भगरूपिणि भगप्रदे भग-लिंग-द्राविणि । संहारभैरवसुरतरसलोलुपे व्योमकेशि पिंगकेशि महाशंखसमाकुले खर्परविहस्तहस्ते रक्तार्णवद्वीपप्रिये मदनोन्मादिनि । शुष्कनरकपालमालाभरणे विद्युतकोटिसमप्रभे नरमांस खण्ड कवलिनि । वमदग्निमुखि फेरु-कोटि-परिवृते कर-तालिका-त्रासित-त्रिविष्टपे । नृत्य-प्रसारित-पादाघात परिवर्तित-भूवलये । पद-भाराव-नम्रीकृत-कमठ-शेषा-भोगे । कुरुकुल्ले कुंच-तुण्डि रक्तमुखि यमघंटे चच्चिर्के दैत्यासुर दैत्य राक्षस-दानव-कुष्माण्ड-प्रेत-भूत-डाकिनी-विनायक-स्कन्द घोणक क्षेत्रपाल-पिशाच-ब्रह्मराक्षस-वेताल-गुह्यक-सर्प-नाग ग्रह-नक्षत्र उत्पात चौराग्नि स्वापद युद्ध वज्रोपलाश निवर्ष विद्युन्मेघ विषोप-विषकपट कृत्या अभिचार द्वेष वशीकरण उच्चाटन उन्माद अपस्मार भूतप्रेत पिशाचवेशन नदी समुद्र आवर्त कान्तार्घोर अन्धकार महामारी बालग्रह हिंस्त्र सर्वस्वापहारि माया विद्युत् दस्यु वंचक दिवाचर रात्रिचर संध्याचर श्रृन्गि नखि दंष्ट्री विद्युत उल्का अरण्यदर प्रान्तरादि नानाविध महोपद्रव भंजनि, सर्वमंत्रतंत्रयंत्र कुप्रयोग प्रमद्दिनि षडाम्नाय समय विद्या प्रकाशिनि श्मशाना ध्यासिनि । निजबल प्रभाव पराक्रम गुण वशीकृत कोटि ब्रह्माण्डवर्ति भूतसंघे । विराड़रुपिणि सर्वदेव महेश्वरि सर्वजन मनोरंजनि सर्वपाप प्रणाशिनि अध्यात्मिकाधि दैविक आधिभौतिक आदि-विविध ह्रदयादि-निर्ददलिनी कैवल्य निर्वाण बलिनि दक्षिणकालि भद्रकालि चण्डकालि कामकलाकालि कौलाचार व्रतिनि कौलाचार कूजिनि कुलधर्म साधनि जगतकारणकारिणि महारौद्रि रौद्रवतारे अबीजे नानाबीजे जगदबीजे कालेश्वरि कालातीते त्रिकालस्थायिनि महाभैरव भैरवगृहिणि जननि जन-जनन-निवर्तिनि प्रलय-अनल-ज्वाला-ज्वालजिह्वे विखर्वोरु फेरुपोत लालिनि मृत्युंजय ह्रदयानंदकरि विलोल व्याल कुण्डल उलूक पक्षच्छत्र महाडामरि नियुक्त-वक्त्र-बाहुचरणे सर्वभूत दमनि नीलांजन समप्रभे योगीन्द्रह्रदयाम्बुजासन स्थित नीलकंठ-देहार्द्धहारिणि षोडश-कलांत-वासिनि हकारार्द्धचारिणि काल-संकर्षिणि कपालहस्ते मद-घूर्णित-लोचने निर्वाण दीक्षा-प्रसादप्रदे निन्दाsनंद-अधिकारिणि मातृगण-मध्यचारिणि त्रयस्त्रि-शत-कोटि-त्रिदश-तेजोमय-विग्रहे प्रलयाग्निरोचिनि विश्व कर्त्रि विश्वाराध्ये विश्व जननि विश्व-संहारिणि विश्व-व्यापिके विश्वेश्वरि निरुपमे निर्विकारे निरंजने निरीहे निस्तरंगे निराकारे परमेश्वरि परमानन्दे परात्परे प्रकृति-पुरुषात्मिके प्रत्ययगोचरे प्रमाणभूते प्रणवस्वरुपे संसारसारे सच्चिदानंदे सनातनि सकले सकल कलातीते सामरस्य-समयिनि केवले कैवल्यरुपे कल्पनातिगे काललोपिनि कामरहिते कामकलाकालि भगवति ।
अर्थ:- ॐ क्लीं क्रों स्फ्रों हूं ह्रीं छ्रीं स्त्रीं फ्रें भगवति प्रसीद प्रसीद जय जय जीव जीव ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हस हस नृत्य नृत्य क छ भगमालिनी भगप्रिये भगातुरे भगांकिते भगरूपिणी भगप्रदे भग और लिंग को द्रवित करने वाली, संहार भैरव के साथ सूरत करने से उत्पन्न आनंद की लोलुप, शिव की भार्या, पिंगकेश वाली, नरकपाल से आवृता, हाथ में खप्पर लिए हुए, रक्त समुद्र और रक्त द्वीप के प्रति आसक्त, कामदेव को उन्मत्त करने वाली, सूखे हुए नरकपालो के आभूषण धारण करने वाली, करोडो बिजली के समान चमक वाली, मनुष्य के मांस को ग्रहण करने वाली, मुख से अग्नि का वमन करने वाली, करोडों गिदडियो से घिरी हुई, हाथ की ताली मात्र से स्वर्ग को कंपा देने वाली, नृत्य के लिए फैलाये गये पैर के आघात से पृथ्वी को मोड़ देने वाली, पैर के भार से कच्छप और शेषनाग के फन को झुका देने वाली, कुरुकुल्ले जैसे संकुचित मुख वाली, रक्त से भरे हुए मुख वाली, यमघंटा चच्चिर्का दैत्य असुर दैत्यराक्षस दानव कुष्माण्ड प्रेत भूत डाकिनी विनायक स्कन्द घोणक क्षेत्रपाल पिशाच ब्रह्मराक्षस बेताल, गुह्यक सर्प नाग ग्रह-नक्षत्र के उत्पात चोर अग्नि जंतु से युद्ध वज्र उपल अशनि की वर्षा विद्युत् मेघ विष उपविश कपटपन अभिचार द्वेष वशीकरण उच्चाटन उन्माद मिर्गी भूत प्रेत पिशाच का आवेश नद-नदी समुद्र के चारों ओर के घने जंगल अंधकार महामारी बालग्रह हिंसक सर्वस्व का अपहरण करने वाले मायावी डाकू ठग लुटेरे चोर सन्ध्याचर सींग नख दांत वाले जीव, विद्युत उल्का अरण्य उसके समीप का स्थान आदि अनेक प्रकार के उपद्रव का नाश करने वाली, समस्त मंत्र-तन्त्र-यंत्र के दुष्प्रयोग को नष्ट करने वाली, समस्त आम्नाय के सिद्धान्त और ज्ञान का प्रकाश करने वाली, श्मशान-निवासिनी, अपने बल, प्रभाव, पराक्रम और गुणों के कारण असंख्य ब्रह्माण्डो में रहने वाले प्राणियों को वश में करने वाली, विराट-स्वरूपा, समस्त देवों की अधिश्वरी, समस्त जनों का मनोरंजन करने वाली, सभी के पापों को नष्ट करने वाली, आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिवैदिक आदि द्वारा विविध ह्रदय की पीड़ा का नाश करने वाली, कैवल्य निर्वाण प्रदान करने वाली दक्षिण काली, भद्र काली, चंड्काली, कामकलाकाली, कौलाचार व्रत करने वाली, कौलाचार का प्रचार करने वाली, कुलधर्म की साधना करने वाली, जगत के कारण की कारण, महारौद्री, स्वयम्भू, नानाबीज, जगत की कारणभूता, काल की स्वामिनी, काल से परे, त्रिकाल-स्थापिनी, महाभयंकर, भैरव की भार्या, जननी, मनुष्य के जन्मबन्धन को हरने वाली, प्रलय-अग्नि की ज्वाला के समूह के समान जिह्वा वाली, छोटी जंघाओ वाली, सियार के बच्चे का पालन करने वाली, महादेव मृत्युंजय के ह्रदय को प्रसन्न करने वाली, चंचल सर्प का कुण्डल और उल्लू के पंखों का छत्र धारण करने से महाभयंकर, दश हजार करोड़ मुख, बाहु और चरनों वाली, समस्त भूतों का दमन करने वाली, नीली स्याही के समान प्रभा वाली, योगियों के ह्रदय-कमल-रूपी आसन पर स्थित नीलकंठ भगवान् की अर्धदेह को धारण करने वाली, सोलह कलाओ के अंत अर्थात् अमृताकला में निवास करने वाली, 'ह' कार के अर्घ यानि विसर्ग में संचरण करने वाली, काल-संकर्षिणी, हाथ में कपाल धारण करने वाली, मद से मस्त नेत्रों वाली, निर्वाण दीक्षा रूपी प्रसाद प्रदान करने वाली, निंदा और आनंद दोनों की अधिकारिणी, मातृसमूह के मध्य में विचरण करने वाली, तैतीस करोड़ देवताओं के तेज की देह वाली, प्रलयकाल में उत्पन्न अग्नि के समान कान्ति वाली, सृष्टि का संहार करने वाली, विश्व द्वारा पूजिता, सृष्टि की रचना करने वाली, सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त, विश्व की ईश्वरी, उपमा-रहित विकारशून्य कलंकवर्जित इच्छारहित निस्तरंग निराकार परमेश्वरी परम आनंदस्वरूपा परापरा प्रकृति-स्वरूपा ध्यान से जान जाने वाली, प्रमाण स्वरूपा, ओंकार स्वरूपा, संसार की तत्वभूत सत-चित-आनन्दस्वरूपा, सनातनी, कलायुक्ता, सम्पूर्ण कलाओ से परे, सामरस्य सिद्धान्त वाली, केवल, केवल्यरुपा, कल्पनातीत काल का लोप करने वाली, कामरहित माँ कामकलाकाली भगवती ( आपको नमस्कार है ) ।
ॐ ख्फ्रें हसौ: सौ: श्रीं ऐं ह्रौं क्रों स्फ्रों सर्वसिद्धिं देहि-देहि मनोरथान् पूरय-पूरय मुक्तिं नियोजय-नियोजय भवपाशं समुन्मूलय-समुन्मूलय जन्ममृत्यु तारय-तारय परविद्यां प्रकाशय-प्रकाशय अपवर्गं निर्माहि-निर्माहि संसारदुखं यातनां विच्छेदय-विच्छेदय पापानि संशमय-संशमय चतुवर्गं साधय-साधय ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं यान् वयं द्विष्मो ये चास्मान् विद्विषन्ति तान् सर्वान् विनाशय-विनाशय मारय-मारय शोषय-शोषय क्षोभय-क्षोभय मयि कृपां निवेशय-निवेशय फ्रें ख्फ्रें ह्स्फ्रें ह्स्ख्फ्रें हूं स्फ्रों क्लीं ह्रीं जय-जय चर-अचरात्मक-ब्रह्माण्ड-उदरवर्ति-भूत-संघाराधिते प्रसीद-प्रसीद तुभ्यं देवि नमस्ते-नमस्ते-नमस्ते ।
अर्थ:- ॐ ख्फ्रें हसौ: सौ: श्रीं ऐं ह्रौं क्रों स्फ्रों सर्वसिद्धि प्रदान करे, प्रदान करे, मेरे मनोरथ पूर्ण करे, पूर्ण करे, मुक्ति प्रदान करे, प्रदान करे, भवपाश से मुक्त करे, मुक्त करे, जन्ममृत्यु से पार करे, पार करे, दुसरो की विद्या का प्रदर्शन करे, प्रदर्शन करे, अपवर्ग से उबारे, उबारे, संसारदुःख की यातना को दूर करे, दूर करे, पापों का नाश करे, नाश करे, चतुवर्ग का साधन करे, साधन करे, ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं, जो मुझसे द्वेष रखते हो, उन सबका विनाश करो, विनाश करो, मारों मारों, शोषण करो, शोषण करो, क्षोभण करो, क्षोभण करो, मुझ पर कृपा करो, कृपा करो, फ्रें ख्फ्रें ह्स्फ्रें ह्स्खफ्रें हूं स्फ्रों क्लीं ह्रीं जय जय चराचरात्मक-ब्रह्माण्ड-उदरवर्ति-भूत-संघाराधिते प्रसीद-प्रसीद तुभ्यं देवि नमस्ते-नमस्ते-नमस्ते । ( देवि! आपको बारम्बार-बारम्बार नमस्कार है ) ।