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शनिवार, 10 अक्टूबर 2015

भैरव कृपा

श्री मद बटुक भैरव शिवांश है तथा शाक्त उपासना में इनके बिना आगे बढना संभव ही नहीं है।शक्ति के किसी भी रूप की उपासना हो भैरव पूजन कर उनकी आज्ञा लेकर ही माता की उपासना होती है।भैरव रक्षक है साधक के जीवन में बाधाओं को दूर कर साधना मार्ग सरल सुलभ बनाते है।

भैरव कृपा
भैरव भक्त वत्सल है शीघ्र ही सहायता करते है,भरण,पोषण के साथ रक्षा भी करते है।ये शिव के अतिप्रिय तथा माता के लाडले है,इनके आज्ञा के बिना कोई शक्ति उपासना करता है तो उसके पुण्य का हरण कर लेते है कारण दिव्य साधना का अपना एक नियम है जो गुरू परम्परा से आगे बढता है।अगर कोई उदण्डता करे तो वो कृपा प्राप्त नहीं कर पाता है।
भैरव सिर्फ शिव माँ के आज्ञा पर चलते है वे शोधन,निवारण,रक्षण कर भक्त को लाकर भगवती के सन्मुख खड़ा कर देते है।इस जगत में शिव ने जितनी लीलाएं की है उस लीला के ही एक रूप है भैरव।भैरव या किसी भी शक्ति के तीन आचार जरूर होते है,जैसा भक्त वैसा ही आचार का पालन करना पड़ता है।ये भी अगर गुरू परम्परा से मिले वही करना चाहिए।आचार में सात्वीक ध्यान पूजन,राजसिक ध्यान पूजन,तथा तामसिक ध्यान पूजन करना चाहिए।भय का निवारण करते है भैरव।
भैरव स्वरुप
इस जगत में सबसे ज्यादा जीव पर करूणा शिव करते है और शक्ति तो सनातनी माँ है इन दोनो में भेद नहीं है कारण दोनों माता पिता है,इस लिए करूणा,दया जो इनका स्वभाव है वह भैरव जी में विद्यमान है।सृष्टि में आसुरी शक्तियां बहुत उपद्रव करती है,उसमें भी अगर कोई विशेष साधना और भक्ति मार्ग पर चलता हो तो ये कई एक साथ साधक को कष्ट पहुँचाते है,इसलिए अगर भैरव कृपा हो जाए तो सभी आसुरी शक्ति को भैरव बाबा मार भगाते है,इसलिये ये साक्षात रक्षक है। भूत बाधा हो या ग्रह बाधा,शत्रु भय हो रोग बाधा सभी को दूर कर भैरव कृपा प्रदान करते है।अष्ट भैरव प्रसिद्ध है परन्तु भैरव के कई अनेको रूप है सभी का महत्व है परन्तु बटुक सबसे प्यारे है।नित्य इनका ध्यान पूजन किया जाय तो सभी काम बन जाते है,जरूरत है हमें पूर्ण श्रद्धा से उन्हें पुकारने की,वे छोटे भोले शिव है ,दौड़ पड़ते है भक्त के रक्षा और कल्याण के लिए। जानें कौन-से भैरव हैं किस अद्भुत शक्ति के स्वामी?शिव जगदव्यापी यानी जगत में हर कण में बसते हैं। शास्त्र भी कहते हैं कि इस जगत की रचना सत्व, रज और तम गुणों से मिलकर हुई। जगतगुरु होने से शिव भी इन तीन गुणों के नियंत्रण माने जाते हैं। इसलिए शिव को आनंद स्वरूप में शंभू, विकराल स्वरूप में उग्र तो सत्व स्वरूप में सात्विक भी पुकारा जाता है।
शिव के यह त्रिगुण स्वरूप भैरव अवतार में भी प्रकट होता है। हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक शिव ने प्रदोषकाल में ही भैरव रूप में काल व कलह रूपी अंधकार से जगत की रक्षा के लिए प्रकट हुए। इसलिए शास्त्रों और धार्मिक परंपराओं में अष्ट भैरव से लेकर 64 भैरव स्वरूप पूजनीय और फलदायी बताए गए हैं।
इसी कड़ी में जानते हैं शिव की रज, तम व सत्व गुणी शक्तियों के आधार पर भैरव स्वरूप कौन है व उनकी साधना किन इच्छाओं को पूरा करती है -
बटुक भैरव - यह भैरव का सात्विक राजस् व् तम व बाल स्वरूप है। जिनकी उपासना सभी सुख, आयु, निरोगी जीवन, पद, प्रतिष्ठा व मुक्ति प्रदान करने वाला माना गया है।
काल भैरव - यह भैरव का राजस् व् तामस किन्तु कल्याणकारी स्वरूप माना गया है। इनको काल का नियंत्रक भी माना गया है। इनकी उपासना काल भय, संकट, दु:ख व शत्रुओं से मुक्ति देने वाली मानी गई है।
आनंद भैरव - भैरव का यह राजस व् तामस स्वरूप माना गया है। दश महाविद्या के अंतर्गत हर शक्ति के साथ भैरव उपासना ऐसी ही अर्थ, धर्म, काम की सिद्धियां देने वाली मानी गई है। तंत्र शास्त्रों में भी ऐसी भैरव साधना के साथ भैरवी उपासना का भी महत्व बताया गया है।चाहें जल्द व ज्यादा धन लाभ..तो जानें भैरव पूजा का सही वक्त व तरीकाशिव का एक नाम भगवान भी है। शास्त्रों में भगवान का अर्थ सर्व शक्तिमान व ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान व वैराग्य सहित छ: गुणों से संपन्नता भी बताया गया है। शिव व उनके सभी अवतारों में यह गुण प्रकट होते हैं व उनकी भक्ति भी सांसारिक जीवन में ऐसी शक्तियों की कामना पूरी करती है।
हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शिव ने भैरव अवतार लिया। जिसका लक्ष्य दुर्गुणी व दुष्ट शक्तियों का अंत ही था, जो सुख, ऐश्वर्य व जीवन में बाधक होती है। शिव का यह कालरक्षक भीषण स्वरूप कालभैरव व काशी के कोतवाल के रूप में पूजनीय है।

1 टिप्पणी:

  1. अच्छा लगा
    मेरा एक पैर ठीक नहीं हो रहा है
    सर्जरी हुई है मेटल लगा हुआ है
    उपाय बताने का कृपा करें

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