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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

हमारी दिनचर्या कैसी हो ?

हमारी  दिनचर्या  कैसी  हो ?

प्रातः 5:00 – 6:00 बजे — जागरण , उषापान, नित्यकर्म स्नानादि |
प्रातः 6:00 – 7:00 बजे — योगासन, प्राणायाम , टहलना |
प्रातः 7:30 – 8:00 बजे — नाश्ता [ फल / अंकुरित अन्न / दूध |
प्रातः 11:30 - 12:00 बजे -- दोपहर का भोजन - हरी सब्जी + सलाद + चपाती + दाल |
सायं 4 :00 बजे -- जूस या फल |
सायं 6 :00 बजे -- सूप |
रात्रि 7 :00 बजे -- रात का भोजन - हरी सब्जी + चपाती या मिक्स वेजिटेबिल दलिया |
रात्रि 10 :00 बजे -- एक गिलास दूध [ यदि लेना चाहें ], शयन |



उपर्युक्त भोजनक्रम एक स्वस्थ्य व्यक्ति के लिए है | यदि व्यक्ति किसी रोग से ग्रस्त है तो भोजनक्रम किसी आहार विशेषज्ञ के निर्देशानुसार रखें |

विशेष :
कम-से-कम ६-७ घंटे की नींद अवश्य लें |
दिन में भोजन के उपरांत विश्राम करें, दिन में सोना हितकर नही है |
पूर्ण आहार के मध्य ६-७ घंटे का अन्तराल अवश्य रखें |
भोजन के तुरंत पहले , साथ में या बाद में पानी नही पीना चाहिए | भोजन के एक घंटा पहले एवं दो घंटा बाद पानी पीना सर्वोत्तम है |
भोजन के प्रत्येक ग्रास को चबाते हुए शांत भाव से भोजन करना चाहिए |
फल खाते समय एक बार में एक तरह के फल का ही प्रयोग करें | कई तरह के फलों का एक साथ सेवन नही करना चाहिए |
भोजन में सब्जी व् सलाद की मात्रा अन्न से दोगुनी रहनी चाहिए |
स्वाद के लिए ठूंस – ठूंस कर नहीं खाना चहिये |
जूस,सूप आदि तरल पदार्थ धीरे-धीरे पीना चाहिए जिससे कि ‘ लार ‘ उसमें अच्छी तरह से मिल जाये |
भोजन के बाद चार घंटे तक पानी के अतिरिक्त अन्य कुछ नही लेना चाहिए |
पानी गर्मियों में २ से ३ लीटर व् सर्दियों में १ से २ लीटर कम से कम लेना चाहिए |
भोजन में सप्राण भोजन [ अंकुरित अन्न ], ताजी हरी सब्जियों एवं फलों कि अधिकता रखनी चाहिए |

गुडुम्म और फोड़े

गुडुम्म और फोड़े

गुडुम्म और फोड़े के उपचार हेतु पीपल की पकी हुई कठोर छाल उतार लाएँ और जलाकर राख कर दें। इस राख को तेल में गर्म करके मरहम बना लें और फोड़े पर लेप दें। एक-दो लेप में ही फोड़ा पककर बह जाएगा और घाव भरने लगेगा। यह राख घाव में भर देने से पानी के संसर्ग या छूत के विकार से भी बचाती है। घाव में नयी त्वचा भरने में भी यह मदद करती है।
नमक, हल्दी, धनिया से बढ़ती है सुख-समृद्धि

आपने बड़े-बूढ़ों को यह कहते हुए सुना होगा कि जिस घर में नमक बंधा हो, तो वहां बरकत रहती है। लक्ष्मी को कमल पर आसीन माना गया है। हल्दी की गाठों को साक्षात गणेश का रूप माना गया है और धनियां को इसलिए इस नाम से पुकारा जाता है क्योंकि वह धन का आवाह्न करता है।

जिस घर में नमक, खड़ा धनिया , हल्दी की गांठे और कमल गट्टों को कुछ मात्रा में ही सही संजोकर रखा जाता है वहां निश्चित बरकत होती है।

साबूत नमक को पर्याप्त मात्रा में ईशान यानी उत्तर-पूर्व दिशा में रखने से विपरीत दिशा में शौचालय होने का दोष कम हो जाता है। इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।

कुछ परंपराएं दाढ़ी बनाने या बाल कटवाने से संबंधित

शास्त्रों के अनुसार दैनिक जीवन में शुभ फल पाने के लिए कई ऐसी परंपराएं बताई गई हैं, जिनका पालन आज भी किया जाता है। ऐसी ही कुछ परंपराएं दाढ़ी बनाने या बाल कटवाने से संबंधित हैं। यहां जानिए इस काम से संबंधित परंपराएं, हमें कब दाढ़ी बनानी चाहिए और कब नहीं, कब बाल कटवाने चाहिए और कब नहीं...
इन दिनों में न करें ये काम
शास्त्रों कहते हैं कि मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को बाल नहीं कटवाना चाहिए। यह अपशकुन माना जाता है। आज भी घर के बड़े और बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
शास्त्रों की मान्यता
- शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मंगलवार को बाल कटवाने से हमारी आयु आठ माह कम हो जाती है।
- गुरुवार देवी लक्ष्मी का दिन माना जाता है, अत: इस दिन बाल कटवाने से धन की हानि होने की संभावनाएं रहती हैं।
- शनिवार को बाल कटवाने से आयु में सात माह की कमी हो जाती है।
- शेष चार दिन सोमवार, बुधवार, शुक्रवार और रविवार को बाल कटवा सकते हैं। इन दिनों में ये काम करने पर दोष नहीं लगता है।
ज्योतिष की मान्यता
ज्योतिष के अनुसार मंगलवार मंगल देव का दिन है। शरीर में मंगल का निवास हमारे रक्त में रहता है और रक्त से बालों की उत्पत्ति होती है। इसी तरह शनिवार शनि ग्रह का दिन हैं और शनि का संबंध हमारी त्वचा से होता है। अत: मंगलवार और शनिवार को बाल कटवाने से मंगल तथा शनि ग्रह संबंधी अशुभ प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं। इनसे बचने के लिए ही इन दिनों में बाल ना कटवाने की बात कही जाती है।
हालांकि आजकल इन बातों को केवल अंधविश्वास ही माना जाता है, लेकिन मान्यता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने जो परंपराएं बनाई हैं, इनका हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
ये हैं प्रचलित कारण
ऐसा माना जाता है कि सप्ताह के कुछ ऐसे दिन हैं, जब ग्रहों से ऐसी किरणें निकलती है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। शनिवार, मंगलवार और गुरुवार को निकलने वाली इन किरणों का सीधा प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग मस्तिष्क ही है, सिर का मध्य भाग अति संवेदनशील और बहुत ही कोमल होता है। जिसकी सुरक्षा बालों से होती है। इसी वजह से इन दिनों में बालों को नहीं कटवाना चाहिए।

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

!! श्री महाकाली !!

!! श्री महाकाली !!
दुर्गाजी का एक रुप कालीजी है। यह देवी विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी है।
यह तथ्य प्रसिद्ध है कि इनकी कृपा मात्र से भक्त को ज्ञान, सम्पति, यश और अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त हो सकते है, पर विशेष रुप से इनकी उपासन्न सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर के संदर्भ में की जाती है। कालीजी की रुपरेखा भयानक है। देखकर सहसा रोमांच हो आता है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।
भक्तों के प्रति तो वे सदैव ही परम दयालु और ममतामयी रहती है। उनकी पूजा के द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
विधि -
लाल आसन पर कालीजी की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करके, लाल चन्दन, पुष्प तथा धूपदीप से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए। नियमत रुप से श्रद्धापूर्वक आराधना करने वालि जनों को कालीजी(प्रायः सभी शक्ति स्वरुप) स्वप्न मे दर्शन देती है। ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न की कहीं चर्चा भी नही चाहिए। कालीजी की पुजा में बली का विधान भी है। किन्त सात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोग किया जा सकता है।
वैसै, देवी - देवता मात्र श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाते है, ये भौतिक उपादान उनकी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते । कुछ भी न हो और कोई साधक केवल श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति ही करता रहे, तो भी वह सफल मनोरथ हो सकता है।
धयान स्तुति-
खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः
शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।
यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम्॥
जप मन्त्र-
ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः।
प्रार्थना-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥
महाकाली मंत्र :-
ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं क्लीं सं लं श्रीं र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं ठं डं ढं णं ऊं तं थं दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं हं क्षं स्वाहा।
विधि :-
यह महाकाली का उग्र मंत्र है। इसकी साधना विंध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर त्रिकोण में स्थित काली खोह में करने से शीघ्र सिद्धि होती है अथवा श्मशान में भी साधना की जा सकती है, लेकिन घर में साधना नहीं करनी चाहिए। जप संख्या 1100 है, जिन्हें 90 दिन तक अवश्य करना चाहिए। दिन में महाकाली की पंचोपचार पूजा करके यथासंभव फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी, निभीर्कतापूर्वक जप करने से महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
फल :-
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों, मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म की सिद्धि होती है। 

गन्ने के रस का लाभ


ग्रीष्म ऋतु में शरीर का जलीय व स्निग्ध अंश कम हो जाता है। गन्ने का रस शीघ्रता से इसकी पूर्ति कर देता है। यह जीवनीशक्ति व नेत्रों की आर्द्ररता को कायम रखता है। इसके नियमित सेवन से शरीर का दुबलापन, पेट की गर्मी, हृदय की जलन व कमजोरी दूर होती है।
गन्ने को साफ करके चूसकर खाना चाहिए। सुबह नियमित रूप से गन्ना चूसने से पथरी में लाभ होता है।
अधिक गर्मी के कारण उलटी होने पर गन्ने के रस में शहद मिलाकर पीने से शीघ्र राहत मिलती है।
एक कप गन्ने के रस में आधा कप अनार का रस मिलाकर पीने से खूनी दस्त मिट जाते हैं।
थोड़ा सा नीँबू व अदरक मिलाकर बनाया गया गन्ने का रस पेट व हृदय के लिए हितकारी है।
सावधानीः मधुमेह (डायबिटीज), कफ व कृमि के रोगियों को गन्ने का सेवन नहीं करना चाहिए।
विशेष ध्यान देने योग्यः आजकल अधिकतर लोग मशीन, जूसर आदि से निकाला हुआ रस पीते हैं। 'सुश्रुत संहिता' के अनुसार यंत्र से निकाला हुआ रस पचने में भारी, दाहकारी कब्जकारक होने के साथ संक्रामक कीटाणुओं से युक्त भी हो सकता है। अतः फल चूसकर या चबाकर खाना स्वास्थ्यप्रद है।

गर्भाधान संस्कार

16 संस्कारो मे क्यो जरूरी है ? पहला संस्कार गर्भाधान ।
1- गर्भाधान संस्कार का आध्यात्मिक रहश्य ।
आजकल की युवा पीड़ी और नास्तिक लोग इन आध्यात्मिक सिद्धांतों को नकार देते है । इसका मुख्य कारण उनकी अनविज्ञता होती है । वो जानना ही नहीं चाहते है कि आखिर आध्यात्म क्या है ?
गर्भाधान संस्कार मे सबसे पहले गर्भ धारण की स्थिति और साम्य को देखा जाता है । अगर ज्योतिष के अनुसार ब्रहमाण्ड मे ग्रहो की गति अनुकूल है तथा ग्रह स्व राशिगत या उच्च स्थिति मे भ्रमण कर रहे है तो समय अनुकूल है ।
जैसे किसान फसल के लिए अपने खेत को तैयार करता है तथा उचित समय पर ही फसल को बोता है तो ही अच्छी फसल होती है । अगर फसल उचित समय पर न बोई जाये तथा खेत को अच्छे से तैयार न किया जाये तो फसल या तो उगती नहीं है या उसकी किस्म उन्नत पैदा नहीं होती है ।
इसी प्रकार गर्भ धारण के लिए उचित समय , मुहूर्त और उचित तिथियो की आवश्यकता होती है । अन्यथा बच्चे का भविष्य और विकाश उन्नत नहीं होता है । गर्भ धारण तनाव मुक्त होकर तथा मन आत्मा को प्रसन्न अवस्था मे रखते हुए करना चाहिए । जितनी मन की प्रसन्न मुद्रा रहेगी तो उतने ही उन्नत शुक्राणु और अंडे का मिलन होगा ।
तनाव मे , क्रोध मे , डर मे , चोरी से छिपकर और भयभीत अवस्था मे किया गये गर्भ धारण मे पैदा होने वाले बच्चे हमेशा इन्ही परिष्टिथियों से गुजरते है ।
इसलिए ऋषिओ ने कहा कि गर्भधारण संस्कार ही मनुष्य के जीवन की नीव होती है । 

चमत्कारी टोटके (कार्यसिद्दी हेतु)


१) चुटकी भर हींग अपने सिर से घुमाकर (उतारा कर) दक्षिण दिशा में फ़ेंक कर जाए |
२) एक हरी इलायची या एक लौंग शिवजी के चरणों में रखकर जाए |
३) शनिवार के दिन एक रुपये का सिक्का या सरसों का तेल किसी कोढ़ी को दान करे. |
४) हरिद्रा के कुछ दाने व्यापार स्थल के द्वार पर फ़ेंक कर जाए |
5) रसायन रहित गुड या चमेली का तेल मंगलवार को हनुमान जी के आगे रखकर जाए.|
६) महाकाली का पूजन शुद्ध घी के दीपक से करे.|
७) काम में जाने से पहले पूजा घर में रखे जल कलश को प्रणाम करके जाए.|
८) दर्पण में स्वयं का चेहरा देखकर जाए.|
९) हर बुधवार एक कटोरी चावल दान कर गणेशजी पर एक सुपारी एक वर्ष तक चढ़ाये |
१०) हनुमान जी की मूर्ति से सिंदूर ले माँ सीता के चरणों में एक ही सांस में लगा दे |.

मुनक्का

मुनक्का
1) कब्ज के रोगियों को रात्रि में मुनक्का और सौंफ खाकर सोना चाहिए। कब्ज दूर करने की यह रामबाण औषधि है।
2) भूने हुए मुनक्के में लहसुन मिलाकर सेवन करने से पेट में रुकी हुई वायु (गैस) बाहर निकल जाती है और कमर के दर्द में लाभ होता है।
3) यदि किसी को कब्ज़ की समस्या है तो उसके लिए शाम के समय 10 मुनक्कों को साफ़ धोकर एक गिलास दूध में उबाल लें फिर रात को सोते समय इसके बीज निकल दें और मुनक्के खा लें तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें , १इस प्रयोग को नियमित करने से लाभ स्वयं महसूस करें | इस प्रयोग से यदि किसी को दस्त होने लगें तो मुनक्के लेना बंद कर दें |
4) पुराने बुखार के बाद जब भूख लगनी बंद हो जाए तब 10 -12 मुनक्के भून कर सेंधा नमक व कालीमिर्च मिलाकर खाने से भूख बढ़ती है |
5) बच्चे यदि बिस्तर में पेशाब करते हों तो उन्हें 2 मुनक्के बीज निकालकर व उसमें एक-एक काली मिर्च डालकर रात को सोने से पहले खिला दें , यह प्रयोग लगातार दो हफ़्तों तक करें , लाभ होगा |
6) मुनक्के के सेवन से कमजोरी मिट जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है |
7) मुनक्के में लौह तत्व Iron की मात्रा अधिक होने के कारण यह Haemoglobin खून के लाल कण को बढ़ाता हैै |
8) 4-5 मुनक्के पानी में भिगोकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं |
9) 10 -12 मुनक्के धोकर रात को पानी में भिगो दें | सुबह को इनके बीज निकालकर खूब चबा -चबाकर खाएं , तीन हफ़्तों तक यह प्रयोग करने से खून साफ़ होता है तथा नकसीर में भी लाभ होता है |
10) 5 मुनक्के लेकर उसके बीज निकल लें , अब इन्हें तवे पर भून लें तथा उसमें कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें | इन्हें कुछ देर चूस कर चबा लें ,खांसी में लाभ होगा |

भगवान विष्णु का स्वप्न


एक बार भगवान नारायण अपने वैकुंठलोक में सोये हुए थे। स्वप्न में वे क्या देखते हैं कि करोड़ों चंद्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरूधारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेंद्र वंदित, अणिमादि सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनंदातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं। उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष-गद्गद हो सहसा शय्या पर उठकर बैठा गए और कुछ देर तक ध्यानस्थ बैठे रहे। उन्हें इस प्रकार बैठे देखकर श्रीलक्ष्मीजी उनसे पूछने लगीं कि ‘भगवन्! आपके इस प्रकार उठ बैठने का क्या कारण है?’ भगवान ने कुछ देर तक उनके इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और आनंद में निमग्न हुए चुपचाप बैठे रहे। अंत में कुछ स्वस्थ होने पर वे गद्गद-कंठ से इस प्रकार बोले - ‘हे देवि! मैंने अभी स्वप्न में भगवान श्रीमहेश्वर का दर्शन किया है, उनकी छबि ऐसी अपूर्व आनंदमय एवं मनोहर थी कि देखते ही बनती थी। मालूम होता है, शंकर ने मुझे स्मरण किया है। अहोभाग्य्! चलो, कैलास में चलकर हम लोग महादेव के दर्शन करें।’
यह कहकर दोनों कैलास की ओर चल दिये। मुश्किल से आधी दूर गये होंगे कि देखते हैं भगरान शंकर स्वयं गिरिजा के साथ उनकी ओर चले आ रहे हैं। अब भगवान के आनंद का क्या ठिकाना? मानो घर बैठे निधि मिल गयी।पास आते ही दोनों परस्पर बड़े प्रेम से मिले। मानो प्रेम और आनंद का समुद्र उमड़ पड़ा। एक दूसरे को देखकर दोनों के नेत्रों से आनंदाश्रु बहने लगे और शरीर पुलकायमान हो गया। दोनों ही एक दूसरे से लिपटे हुए कुछ देर मूकवत् खड़े रहे। प्रश्नोत्तर होने पर मालूम हुआ कि शंकरजी को भी रात्रि में इसी प्रकार का स्वप्न हुआ कि मानो विष्णु भगवान को वे उसी रूप में देख रहे हैं, जिस रूप में वे अब उनके सामने खड़े थे। दोनों के स्वप्न का वृत्तांत अवगत होने पर दोनों ही लगे एक दूसरे से अपने यहां लिवा जाने का आग्रह करने। नारायण कहते वैकुंठ चलो और शंभु कहते कैलास की ओर प्रस्थान कीजिए। दोनों के आग्रह में इतना अलौकिक प्रेम था कि निर्णय करना कठिन हो गया कि कहां चला जाय। इतने में ही क्या देखते हैं कि वीणा बजाते, हरिगुण गाते नारदजी कहीं से आ निकले। बस, फिर क्या था? लगे दोनों ही उनसे निर्णय कराने कि कहां चला जाय? बेचारे नारदजी तो स्वयं परेशान थे उस अलौकिक मिलन को देखार; वे तो स्वयं अपनी सुध-बुध भूल गए और लगे मस्त होकर दोनों का गुणगान करने। अब निर्णय कौन करे? अंत में यह तय हुआ कि भगवती उमा जो कह दें वही ठीक है। भगवती उमा पहले तो कुछ देर चुप रहीं। अंत में वे दोनों को लक्ष्य करके बोलीं - ‘हे नाथ! हे नारायण! आप लोगों के निश्चल, अनन्य एवं अलौकिक प्रेम को देखकर तो यही समझ में आता है कि आपके निवास-स्थान अलग-अलग नहीं हैं, जो कैलास है वही वैकुण्ठ है और जो वैकुण्ठ है वही कैलास है, केवल नाम में ही भेद है। यही नहीं, मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी आत्मा भी एक ही है, केवल शरीर देखने में द्प हैं। और तो और मुझे तो अब यह स्पष्ट दीखने लगा है कि आपकी भार्याएं भी एक ही हैं, दो नहीं। जो मैं हूं वही श्रीलक्ष्मी हैं और जो श्रीलक्ष्मी हैं वही मैं हूं। केवल इतना ही नहीं, मेरी तो अब यह दृढ़ धारणा हो गई है कि आप लोगों में से एक के प्रति जो द्वेष करता है, वह मानो दूसरे के प्रति ही करता है, एक की जो पूजा करता है, वह स्वभाविक ही दूसरे की भी करता है और जो एक को अपूज्य मानता है, वह दूसरे की भी पूजा नहीं करता। मैं तो यह समझती हूं कि आप दोनों में जो भेद मानता है, उसका चिरकाल तक घोर पतन होता है। मैं देखती हीं कि आप मुझे इस प्रसंग में अपना मध्यस्थ बनाकर मानो मेरी प्रवंचना कर रहे हैं, मुझे चक्कर में डाल रहे हैं, मुझे भुला रहे हैं। अब मेरी यह प्रार्थना है कि आप लोग दोनों ही अपने-अपने लोक को पधारिए। श्रीविष्णु यह समझें कि हम शिवरूप से वैकुण्ठ जा रहे हैं और महेश्वर यह मानें कि हम विष्णुरूप से कैलास गमन कर रहे हैं।’
इस उत्तर को सुनकर दोनों परम प्रसन्न हुए और भगवती उमा की प्रशंसा करते हुए दोनों प्रणामालिंगन के अनंतर हर्षित हो अपने-अपने लोक को चले गए।
लौटकर जब श्रीविष्णु वैकुण्ठ पहुंचे तो श्रीलक्ष्मी जी उनसे पूछने लगीं कि - ‘प्रभो! सबसे अधिक प्रिय आपको कौन हैं?’ इस पर भगवान बोले - ‘प्रिये! मेरे प्रियतम केवल श्रीशंकर हैं। देहधारियों को अपने देह की भांति वे मुझे अकारण ही प्रिय हैं। एक बार मैं और शंकर दोनों ही पृथ्वी पर घूमने निकले। मैं अपने प्रियतम की खोज में इस आशय से निकला कि मेरी ही तरह जो अपने प्रियतम की खोज में देश-देशांतर में भटक रहा होगा, वही मुझे अकारण प्रिय होगा। थोड़ी देर के बाद मेरी श्रीशंकरजी से भेंट जो गयी। ज्यों ही हम लोगों की चार आंखें हुईं कि हम लोग पूर्वजन्मार्जित विज्ञा की भांति एक्-दूसरे के प्रति आकृष्ट हो गए। ‘वास्तव में मैं ही जनार्दन हूं और मैं ही महादेव हूं। अलग-अलग दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति मुझमें और उनमें कोई अंतर नहीं है। शंकरजी के अतिरिक्त शिव की अर्चा करने वाला शिवभक्त भी मुझे अत्यंत प्रिय है। इसके विपरीत जो शिव की पूजा नहीं करते, वे मुझे कदापि प्रिय नहीं हो सकते।’